युद्ध की बदल रही प्रकृति, लेकिन भूमि ही विजय का आधार रहेगी” – सेना प्रमुख द्विवेदी
नई दिल्ली सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने मंगलवार को युद्ध की किसी भी स्थिति में थल सेना के महत्व पर जोर दिया और कहा कि भारत के संदर्भ में जमीन पर प्रभुत्व ही विजय का आधार बना रहेगा। एक कार्यक्रम में उन्होंने हाल के अलास्का शिखर सम्मेलन का हवाला देते हुए कहा कि अमेरिका और रूस के राष्ट्राध्यक्षों ने यूक्रेन संघर्ष पर केवल यह चर्चा की कि कितनी जमीन किसके स्वामित्व में जाए। उन्होंने कहा, भारत में, जहां हम ढाई मोर्चे पर (सीमा पर चीन-पाकिस्तान व देश के भीतर उग्रवाद) खड़े हैं, जमीन ही विजय का मुख्य आधार रहेगी।
यह टिप्पणी जनरल द्विवेदी ने अखिल भारतीय प्रबंधन संघ के सम्मेलन में कही, जहां वायुसेना प्रमुख ए. पी. सिंह दो हफ्ते पूर्व 'ऑपरेशन सिंदूर' के हवाले से वायु शक्ति की महत्ता पर बात कर चुके थे। उन्होंने युद्ध की बदलती प्रकृति पर भी प्रकाश डाला और बताया कि भारतीय सेना नई तकनीकों को शामिल कर व्यापक परिवर्तन कर रही है। उन्होंने विशेष रूप से 'ऑपरेशन सिंदूर' की कामयाबी का उदाहरण दिया, जिसे सैनिकों, कमांडरों और अन्य इकाइयों ने बिना युद्ध की घोषणा के मिलकर अंजाम दिया।
सेना प्रमुख ने कहा कि इस अभियान में पूरा सरकारी तंत्र एकजुट था। सभी ने बिना 'युद्ध पुस्तिका' लागू किए काम किया और हर जरूरी प्रक्रिया बिना कोई कानूनी बाधा के पूरी कर ली गई। उन्होंने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर भी जोर दिया और कहा कि यदि उपकरण भारत निर्मित होगा, तो पैसे कभी रुकावट नहीं बनेंगे। उन्होंने, रक्षा उद्योग को समय सीमा के भीतर उच्च गुणवत्ता के अनुरूप उत्पादन की चुनौती स्वीकारने को कहा। जनरल द्विवेदी ने कहा कि युद्ध में कोई दूसरा स्थान नहीं होता है, केवल जीत होती है, इसलिए गुणवत्ता महत्वपूर्ण है।
जनरल द्विवेदी ने बताया कि रक्षा बजट में हर साल 10 फीसदी की वृद्धि से एक ऐसा आत्मनिर्भर पूल तैयार होगा, जो अत्याधुनिक समाधानों को बढ़ावा देगा। उन्होंने उद्योग जगत से कहा कि वह सोच-समझकर रक्षा क्षेत्र के विकास और उत्पादन में निवेश करे। सेना शुरुआत में उतना ही सामान खरीदेगी, जितना उद्योग बना सकेगा। जब उद्योग अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाएंगे, तब सेना की खरीद भी बढ़ेगी। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि हमारी जरूरतें समय के साथ बढ़ती रहेंगी। अभी तक हमारी मिसाइलें, ड्रोन और गोला-बारूद 100 से 150 किलोमीटर तक मार कर सकते हैं, लेकिन भविष्य में हमें ऐसी ताकत चाहिए जो 750 किलोमीटर या उससे भी ज्यादा दूर तक हमला कर सके।