शीतला माता: कोने-कोन से श्रद्धालु यहां आते हैं. मन्नत मांगने
शीतला माता की पूजा कुछ क्षेत्रों सप्तमी पर तो कुछ क्षेत्रों में अष्टमी पर होती है लेकिन दोनों का ही उद्देश्य जीवन में सुख-शांति की कामना है। वैसे तो देश के हर क्षेत्र में शीतला माता के मंदिर हैं, लेकिन गुड़गांव का शीतला माता मंदिर विख्यात है जहां नवरात्रि के अवसर पर तो भक्तों की भारी भीड़ रहती है।
देश के कोने-कोन से श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने आते हैं. शीतला माता का यह मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां प्रतिवर्ष दो बार एक-एक महीने का मेला लगता है। शीतला माता मंदिर महाभारत काल से जुड़ा है।
तब से अब तक गुड़गांव में भारतवंशियों के कुलगुरु कृपाचार्य की पत्नी गुरुमां... शीतला देवी की पूजा-अर्चना होती है. तकरीबन पांच सौ वर्षों से यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा-अर्चना-मानता से माता के प्रकोप से शांति मिलती है। गुड़गांव का शीतला माता मंदिर मुख्य बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के पास ही है।
शीतला चालीसा
॥ दोहा ॥
जय-जय माता शीतला,तुमहिं धरै जो ध्यान। होय विमल शीतल हृदय,विकसै बुद्धि बलज्ञान॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणखानी॥
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित। पूरण शरदचन्द्र समसाजित॥
विस्फोटक से जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीरा॥
मातु शीतला तव शुभनामा। सबके गाढ़े आवहिं कामा॥
शोकहरी शंकरी भवानी। बाल-प्राणरक्षी सुख दानी॥
शुचि मार्जनी कलश करराजै। मस्तक तेज सूर्य समराजै॥
चौसठ योगिन संग में गावैं। वीणा ताल मृदंग बजावै॥
नृत्य नाथ भैरो दिखरावैं। सहज शेष शिव पार ना पावैं॥
धन्य-धन्य धात्री महारानी। सुरनर मुनि तब सुयश बखानी॥
ज्वाला रूप महा बलकारी। दैत्य एक विस्फोटक भारी॥
घर-घर प्रविशत कोई न रक्षत। रोग रूप धरि बालक भक्षत॥
हाहाकार मच्यो जगभारी। सक्यो न जब संकट टारी॥
तब मैया धरि अद्भुत रूपा। करमें लिये मार्जनी सूपा॥
विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्ह्यो। मुसल प्रहार बहुविधि कीन्ह्यो॥
बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा। मैया नहीं भल मैं कछु चीन्हा॥
अबनहिं मातु, काहुगृह जइहौं। जहँ अपवित्र सकल दुःख हरिहौं॥
भभकत तन, शीतल ह्वै जइहैं। विस्फोटक भयघोर नसइहैं॥
श्री शीतलहिं भजे कल्याना। वचन सत्य भाषे भगवाना॥
विस्फोटक भय जिहि गृह भाई। भजै देवि कहँ यही उपाई॥
कलश शीतला का सजवावै। द्विज से विधिवत पाठ करावै॥
तुम्हीं शीतला, जग की माता। तुम्हीं पिता जग की सुखदाता॥
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी। नमो नमामि शीतले देवी॥
नमो सुक्खकरणी दुःखहरणी। नमो-नमो जगतारणि तरणी॥
नमो-नमो त्रैलोक्य वन्दिनी। दुखदारिद्रादिक कन्दिनी॥
श्री शीतला, शेढ़ला, महला। रुणलीह्युणनी मातु मंदला॥
हो तुम दिगम्बर तनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी॥
रासभ, खर बैशाख सुनन्दन। गर्दभ दुर्वाकंद निकन्दन॥
सुमिरत संग शीतला माई। जाहि सकल दुख दूर पराई॥
गलका, गलगन्डादि जुहोई। ताकर मंत्र न औषधि कोई॥
एक मातु जी का आराधन। और नहिं कोई है साधन॥
निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय मन इच्छित फल पावै॥
कोढ़ी, निर्मल काया धारै। अन्धा, दृग-निज दृष्टि निहारै॥
वन्ध्या नारि पुत्र को पावै। जन्म दरिद्र धनी होई जावै॥
मातु शीतला के गुण गावत। लखा मूक को छन्द बनावत॥
यामे कोई करै जनि शंका। जग मे मैया का ही डंका॥
भनत रामसुन्दर प्रभुदासा। तट प्रयाग से पूरब पासा॥
पुरी तिवारी मोर निवासा। ककरा गंगा तट दुर्वासा॥
अब विलम्ब मैं तोहि पुकारत। मातु कृपा कौ बाट निहारत॥
पड़ा क्षर तव आस लगाई। रक्षा करहु शीतला माई॥
॥ दोहा ॥
घट-घट वासी शीतला,शीतल प्रभा तुम्हार।
शीतल छइयां में झुलई,मइया पलना डार॥
॥ श्री शीतला माता की आरती ॥
जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता।
आदि ज्योति महारानीसब फल की दाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
रतन सिंहासन शोभित,श्वेत छत्र भाता।
ऋद्धि-सिद्धि चँवर डोलावें,जगमग छवि छाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
विष्णु सेवत ठाढ़े,सेवें शिव धाता।
वेद पुराण वरणतपार नहीं पाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
इन्द्र मृदङ्ग बजावतचन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजावैनारद मुनि गाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
घण्टा शङ्ख शहनाईबाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरतीलखि लखि हर्षाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
ब्रह्म रूप वरदानीतुही तीन काल ज्ञाता।
भक्तन को सुख देतीमातु पिता भ्राता॥ ॐ जय शीतला माता...।
जो जन ध्यान लगावेप्रेम शक्ति पाता।
सकल मनोरथ पावेभवनिधि तर जाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
रोगों से जो पीड़ित कोईशरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल कायाअन्ध नेत्र पाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
बांझ पुत्र को पावेदारिद्र कट जाता।
ताको भजै जो नाहींसिर धुनि पछताता॥ ॐ जय शीतला माता...।
शीतल करती जन कीतू ही है जग त्राता।
उत्पत्ति बाला बिनाशनतू सब की माता॥ ॐ जय शीतला माता...।
दास नारायणकर जोरी माता।
भक्ति आपनी दीजैऔर न कुछ माता॥ ॐ जय शीतला माता...।
शीतला माता की पूजा कुछ क्षेत्रों सप्तमी पर तो कुछ क्षेत्रों में अष्टमी पर होती है लेकिन दोनों का ही उद्देश्य जीवन में सुख-शांति की कामना है। वैसे तो देश के हर क्षेत्र में शीतला माता के मंदिर हैं, लेकिन गुड़गांव का शीतला माता मंदिर विख्यात है जहां नवरात्रि के अवसर पर तो भक्तों की भारी भीड़ रहती है।
देश के कोने-कोन से श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने आते हैं. शीतला माता का यह मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां प्रतिवर्ष दो बार एक-एक महीने का मेला लगता है। शीतला माता मंदिर महाभारत काल से जुड़ा है।
तब से अब तक गुड़गांव में भारतवंशियों के कुलगुरु कृपाचार्य की पत्नी गुरुमां... शीतला देवी की पूजा-अर्चना होती है. तकरीबन पांच सौ वर्षों से यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा-अर्चना-मानता से माता के प्रकोप से शांति मिलती है। गुड़गांव का शीतला माता मंदिर मुख्य बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के पास ही है।
शीतला चालीसा
॥ दोहा ॥
जय-जय माता शीतला,तुमहिं धरै जो ध्यान। होय विमल शीतल हृदय,विकसै बुद्धि बलज्ञान॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणखानी॥
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित। पूरण शरदचन्द्र समसाजित॥
विस्फोटक से जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीरा॥
मातु शीतला तव शुभनामा। सबके गाढ़े आवहिं कामा॥
शोकहरी शंकरी भवानी। बाल-प्राणरक्षी सुख दानी॥
शुचि मार्जनी कलश करराजै। मस्तक तेज सूर्य समराजै॥
चौसठ योगिन संग में गावैं। वीणा ताल मृदंग बजावै॥
नृत्य नाथ भैरो दिखरावैं। सहज शेष शिव पार ना पावैं॥
धन्य-धन्य धात्री महारानी। सुरनर मुनि तब सुयश बखानी॥
ज्वाला रूप महा बलकारी। दैत्य एक विस्फोटक भारी॥
घर-घर प्रविशत कोई न रक्षत। रोग रूप धरि बालक भक्षत॥
हाहाकार मच्यो जगभारी। सक्यो न जब संकट टारी॥
तब मैया धरि अद्भुत रूपा। करमें लिये मार्जनी सूपा॥
विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्ह्यो। मुसल प्रहार बहुविधि कीन्ह्यो॥
बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा। मैया नहीं भल मैं कछु चीन्हा॥
अबनहिं मातु, काहुगृह जइहौं। जहँ अपवित्र सकल दुःख हरिहौं॥
भभकत तन, शीतल ह्वै जइहैं। विस्फोटक भयघोर नसइहैं॥
श्री शीतलहिं भजे कल्याना। वचन सत्य भाषे भगवाना॥
विस्फोटक भय जिहि गृह भाई। भजै देवि कहँ यही उपाई॥
कलश शीतला का सजवावै। द्विज से विधिवत पाठ करावै॥
तुम्हीं शीतला, जग की माता। तुम्हीं पिता जग की सुखदाता॥
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी। नमो नमामि शीतले देवी॥
नमो सुक्खकरणी दुःखहरणी। नमो-नमो जगतारणि तरणी॥
नमो-नमो त्रैलोक्य वन्दिनी। दुखदारिद्रादिक कन्दिनी॥
श्री शीतला, शेढ़ला, महला। रुणलीह्युणनी मातु मंदला॥
हो तुम दिगम्बर तनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी॥
रासभ, खर बैशाख सुनन्दन। गर्दभ दुर्वाकंद निकन्दन॥
सुमिरत संग शीतला माई। जाहि सकल दुख दूर पराई॥
गलका, गलगन्डादि जुहोई। ताकर मंत्र न औषधि कोई॥
एक मातु जी का आराधन। और नहिं कोई है साधन॥
निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय मन इच्छित फल पावै॥
कोढ़ी, निर्मल काया धारै। अन्धा, दृग-निज दृष्टि निहारै॥
वन्ध्या नारि पुत्र को पावै। जन्म दरिद्र धनी होई जावै॥
मातु शीतला के गुण गावत। लखा मूक को छन्द बनावत॥
यामे कोई करै जनि शंका। जग मे मैया का ही डंका॥
भनत रामसुन्दर प्रभुदासा। तट प्रयाग से पूरब पासा॥
पुरी तिवारी मोर निवासा। ककरा गंगा तट दुर्वासा॥
अब विलम्ब मैं तोहि पुकारत। मातु कृपा कौ बाट निहारत॥
पड़ा क्षर तव आस लगाई। रक्षा करहु शीतला माई॥
॥ दोहा ॥
घट-घट वासी शीतला,शीतल प्रभा तुम्हार।
शीतल छइयां में झुलई,मइया पलना डार॥
॥ श्री शीतला माता की आरती ॥
जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता।
आदि ज्योति महारानीसब फल की दाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
रतन सिंहासन शोभित,श्वेत छत्र भाता।
ऋद्धि-सिद्धि चँवर डोलावें,जगमग छवि छाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
विष्णु सेवत ठाढ़े,सेवें शिव धाता।
वेद पुराण वरणतपार नहीं पाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
इन्द्र मृदङ्ग बजावतचन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजावैनारद मुनि गाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
घण्टा शङ्ख शहनाईबाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरतीलखि लखि हर्षाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
ब्रह्म रूप वरदानीतुही तीन काल ज्ञाता।
भक्तन को सुख देतीमातु पिता भ्राता॥ ॐ जय शीतला माता...।
जो जन ध्यान लगावेप्रेम शक्ति पाता।
सकल मनोरथ पावेभवनिधि तर जाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
रोगों से जो पीड़ित कोईशरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल कायाअन्ध नेत्र पाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
बांझ पुत्र को पावेदारिद्र कट जाता।
ताको भजै जो नाहींसिर धुनि पछताता॥ ॐ जय शीतला माता...।
शीतल करती जन कीतू ही है जग त्राता।
उत्पत्ति बाला बिनाशनतू सब की माता॥ ॐ जय शीतला माता...।
दास नारायणकर जोरी माता।
भक्ति आपनी दीजैऔर न कुछ माता॥ ॐ जय शीतला माता...।
शीतला माता की पूजा कुछ क्षेत्रों सप्तमी पर तो कुछ क्षेत्रों में अष्टमी पर होती है लेकिन दोनों का ही उद्देश्य जीवन में सुख-शांति की कामना है। वैसे तो देश के हर क्षेत्र में शीतला माता के मंदिर हैं, लेकिन गुड़गांव का शीतला माता मंदिर विख्यात है जहां नवरात्रि के अवसर पर तो भक्तों की भारी भीड़ रहती है।
देश के कोने-कोन से श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने आते हैं. शीतला माता का यह मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां प्रतिवर्ष दो बार एक-एक महीने का मेला लगता है। शीतला माता मंदिर महाभारत काल से जुड़ा है।
तब से अब तक गुड़गांव में भारतवंशियों के कुलगुरु कृपाचार्य की पत्नी गुरुमां... शीतला देवी की पूजा-अर्चना होती है. तकरीबन पांच सौ वर्षों से यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा-अर्चना-मानता से माता के प्रकोप से शांति मिलती है। गुड़गांव का शीतला माता मंदिर मुख्य बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के पास ही है।
शीतला चालीसा
॥ दोहा ॥
जय-जय माता शीतला,तुमहिं धरै जो ध्यान। होय विमल शीतल हृदय,विकसै बुद्धि बलज्ञान॥
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणखानी॥
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित। पूरण शरदचन्द्र समसाजित॥
विस्फोटक से जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीरा॥
मातु शीतला तव शुभनामा। सबके गाढ़े आवहिं कामा॥
शोकहरी शंकरी भवानी। बाल-प्राणरक्षी सुख दानी॥
शुचि मार्जनी कलश करराजै। मस्तक तेज सूर्य समराजै॥
चौसठ योगिन संग में गावैं। वीणा ताल मृदंग बजावै॥
नृत्य नाथ भैरो दिखरावैं। सहज शेष शिव पार ना पावैं॥
धन्य-धन्य धात्री महारानी। सुरनर मुनि तब सुयश बखानी॥
ज्वाला रूप महा बलकारी। दैत्य एक विस्फोटक भारी॥
घर-घर प्रविशत कोई न रक्षत। रोग रूप धरि बालक भक्षत॥
हाहाकार मच्यो जगभारी। सक्यो न जब संकट टारी॥
तब मैया धरि अद्भुत रूपा। करमें लिये मार्जनी सूपा॥
विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्ह्यो। मुसल प्रहार बहुविधि कीन्ह्यो॥
बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा। मैया नहीं भल मैं कछु चीन्हा॥
अबनहिं मातु, काहुगृह जइहौं। जहँ अपवित्र सकल दुःख हरिहौं॥
भभकत तन, शीतल ह्वै जइहैं। विस्फोटक भयघोर नसइहैं॥
श्री शीतलहिं भजे कल्याना। वचन सत्य भाषे भगवाना॥
विस्फोटक भय जिहि गृह भाई। भजै देवि कहँ यही उपाई॥
कलश शीतला का सजवावै। द्विज से विधिवत पाठ करावै॥
तुम्हीं शीतला, जग की माता। तुम्हीं पिता जग की सुखदाता॥
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी। नमो नमामि शीतले देवी॥
नमो सुक्खकरणी दुःखहरणी। नमो-नमो जगतारणि तरणी॥
नमो-नमो त्रैलोक्य वन्दिनी। दुखदारिद्रादिक कन्दिनी॥
श्री शीतला, शेढ़ला, महला। रुणलीह्युणनी मातु मंदला॥
हो तुम दिगम्बर तनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी॥
रासभ, खर बैशाख सुनन्दन। गर्दभ दुर्वाकंद निकन्दन॥
सुमिरत संग शीतला माई। जाहि सकल दुख दूर पराई॥
गलका, गलगन्डादि जुहोई। ताकर मंत्र न औषधि कोई॥
एक मातु जी का आराधन। और नहिं कोई है साधन॥
निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय मन इच्छित फल पावै॥
कोढ़ी, निर्मल काया धारै। अन्धा, दृग-निज दृष्टि निहारै॥
वन्ध्या नारि पुत्र को पावै। जन्म दरिद्र धनी होई जावै॥
मातु शीतला के गुण गावत। लखा मूक को छन्द बनावत॥
यामे कोई करै जनि शंका। जग मे मैया का ही डंका॥
भनत रामसुन्दर प्रभुदासा। तट प्रयाग से पूरब पासा॥
पुरी तिवारी मोर निवासा। ककरा गंगा तट दुर्वासा॥
अब विलम्ब मैं तोहि पुकारत। मातु कृपा कौ बाट निहारत॥
पड़ा क्षर तव आस लगाई। रक्षा करहु शीतला माई॥
॥ दोहा ॥
घट-घट वासी शीतला,शीतल प्रभा तुम्हार।
शीतल छइयां में झुलई,मइया पलना डार॥
॥ श्री शीतला माता की आरती ॥
जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता।
आदि ज्योति महारानीसब फल की दाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
रतन सिंहासन शोभित,श्वेत छत्र भाता।
ऋद्धि-सिद्धि चँवर डोलावें,जगमग छवि छाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
विष्णु सेवत ठाढ़े,सेवें शिव धाता।
वेद पुराण वरणतपार नहीं पाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
इन्द्र मृदङ्ग बजावतचन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजावैनारद मुनि गाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
घण्टा शङ्ख शहनाईबाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरतीलखि लखि हर्षाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
ब्रह्म रूप वरदानीतुही तीन काल ज्ञाता।
भक्तन को सुख देतीमातु पिता भ्राता॥ ॐ जय शीतला माता...।
जो जन ध्यान लगावेप्रेम शक्ति पाता।
सकल मनोरथ पावेभवनिधि तर जाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
रोगों से जो पीड़ित कोईशरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल कायाअन्ध नेत्र पाता॥ ॐ जय शीतला माता...।
बांझ पुत्र को पावेदारिद्र कट जाता।
ताको भजै जो नाहींसिर धुनि पछताता॥ ॐ जय शीतला माता...।
शीतल करती जन कीतू ही है जग त्राता।
उत्पत्ति बाला बिनाशनतू सब की माता॥ ॐ जय शीतला माता...।
दास नारायणकर जोरी माता।
भक्ति आपनी दीजैऔर न कुछ माता॥ ॐ जय शीतला माता...।