आंखों की वो जानलेवा बीमारी जिसमें आठ दिन में हो जाती है मरीज की मौत
अफ्रीका के कुछ इलाकों में ब्लीडिंग आई डिजीज के मामले सामने आए हैं. इसको ब्लीडिंग आई इसलिए कहा जाता है क्योंकि इससे संक्रमित होने के बाद कुछ मरीजों की आंखें एकदम लाल हो जाती है और ऐसा लगता है कि आंखों से खून निकल रहा है. आंखों की ये बीमारी मारबर्ग वायरस के कारण होती है. इस वायरस के कई लक्षण शरीर में दिखाई देतै हैं. इनमें एक लक्षण आखों के लाल होना और ब्लीडिंग का भी है. अफ्रीका के कई देशों में मारबर्ग वायरस से होने वाली इस डिजीज के मामले बढ़ रहे हैं. इस बीमारी में डेथ रेट 50 से 80 फीसदी है. गंभीर लक्षण होने पर मरीज आठ से 9 दिन में दम तोड़ देते हैं.
फिलहाल अफ्रीका के रवांडा में मारबर्ग वायरस के केस आ रहे हैं. इससे संक्रमित 66 में से 15 मरीजों की मौत हो चुकी है. पहले आए मामलों में 24 से 88 फीसदी तक डेथ रेट मिला है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये वायरस कितना खतरनाक है. मारबर्ग से संक्रमित होने के बाद पहले बुखार आता है और इसके बाद ये वायरस शरीर में फैल जाता है. यह शरीर की इम्यूनिटी पर भी गंभीर असर करता है. इससे शरीर के किसी भी हिस्से में ब्लीडिंग हो जाती है.
मारबर्ग वायरस कैसे बनता है मौत का कारण
दिल्ली के जीटीबी अस्पताल में मेडिसिन विभाग में डॉ अजित कुमार बताते हैं कि मारबर्ग वायरस से संक्रमित होने के बाद बुखार आता है. ये बुखार शरीर में बीपी को कम कर देता है. इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है और कुछ मामलों में इंटरनल ब्लीडिंग हो जाती है, जो मौत का कारण बन सकता है.
कुछ मरीजों में ये वायरससेप्टिक शॉक का कारण बन सकता है, जिसमें शरीर की इम्यूनिटी वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए ज्यादा एक्टिव हो जाती है. इससे शरीर में सूजन और बीपी कम हो जाता है, जिससे मौत हो सकती है, मारबर्ग वायरस पेरिटोनाइटिस का कारण बन सकता है, जिसमें पेट की दीवार में ब्लीडिंग होती है और मौत हो सकती है. कुछ मरीजों में इस वायरस के कारण आंखों से भी ब्लीडिंग हो जाती है. ये स्थिति भी काफी खतरनाक है.
डॉ अजित बताते हैं कि मारबर्ग से संक्रमित होने के बाद अगर किसी मरीज को शरीर के किसी हिस्से से ब्लीडिंग हो जाती है तो मरीज की जान बचाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे मामलों में लक्षण दिखने के आठ से 9 दिन के भीतर मौत हो सकती है.
कैसे फैलता है मारबर्ग वायरस
मारबर्ग वायरस संक्रमित राउसेट चमगादड़ों से लोगों में फैलता है. यह वायरस संक्रमित चमगादड़ों की लार, मूत्र और मल में पाया जाता है. एक बार जब यह बीमारी किसी इंसान में फैलती है तो एक से दूसरे व्यक्ति में भी फैलने लगती है. कोई व्यक्ति मारबर्ग वायरस से संक्रमित तब होता है जब वह इस वायरस से संक्रमित मरीज के नजदीक के संपर्क में आता है. संक्रमित मरीज की लार, खून और उसके यूज की गई चीजों से एक से दूसरे व्यक्ति में यह वायरस चला जाता है.
क्या मारबर्ग का कोई इलाज है
महामारी विशेषज्ञ डॉ जुगल किशोर बताते हैं कि फिलहाल मारबर्ग वायरस डिजीज का कोई निर्धारित इलाज नहीं है. इसकी कोई वैक्सीन भी नहीं है. केवल लक्षणों के आधार पर मरीज का ट्रीटमेंट किया जाता है, लेकिन अगर इस बीमारी को समय पर कंट्रोल न कर पाएं तो मरीज की जान बचाना काफी मुश्किल हो जाता है.
किस टेस्ट से मारबर्ग वायरस का पता चलता है
पॉलिमरेज़ चेन रिएक्शन (पीसीआर)
आईजीएम-कैप्चर एलिसा
एंटीजन-कैप्चर एलिसा टेस्ट
कैसे करें बचाव
अफ्रीकी देशों की यात्रा से बचें
संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में न आएं
फ्लू के लक्षण दिखने पर इलाज कराएं
घर में साफ- सफाई का ध्यान रखें