स्क्रीन देखने या कार्य के दौरान करें 20:20:20 सिद्धांत का पालन, आंखों पर कम होंगे दुष्परिणाम

Update: 2025-09-30 04:30 GMT


  मोबाइल, टीबी या लैपटॉप-कंप्यूटर स्क्रीन पर कार्य करने वाले यदि स्क्रीन टाइम कम करें और नेत्र चिकित्सा की 20:20:20 सिद्धांत का पालन करें तो आंखों पर इसके दुष्परिणाम कम हो सकते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर उम्र के लोग मोबाइल व टीवी स्क्रीन के सामने बैठकर 8-10 घंटे गुजार रहे हैं। हर उम्र के लोगों पर स्क्रीन के दुष्परिणाम देखे जा रहे हैं।   मोबाइल, टीबी या लैपटॉप-कंप्यूटर स्क्रीन पर कार्य करने वाले यदि स्क्रीन टाइम कम करें और नेत्र चिकित्सा की 20:20:20 सिद्धांत का पालन करें तो आंखों पर इसके दुष्परिणाम कम हो सकते हैं। इस सिद्धांत में हर 20 मिनट में 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखना चाहिए। स्क्रीन पर काम करते समय बार-बार पलकें झपकना चाहिए ताकि आंखों का तरल न सूखे और ड्राई आई का खतरा न रहे।

कोविड के बाद हालात ज्यादा हुए खराब

 ओपीडी में   हर दिन10 से अधिक बच्चे आंखों की समस्या लेकर पहुंच रहे हैं।  2020 कोविड के बाद बच्चों में स्क्रीन टाइम बढ़ा है। पिछले 5 सालों में अब बच्चों को मोबाइल की लत लग गई है। अब ऐसे बच्चे भी सामने आते हैं जो पहले स्वस्थ थे लेकिन अब एकाएक उन्हें माइनस 2 से लेकर माइनस 3 तक चश्मे का नंबर आ रहा है।

 

आंखें सिकोड़ते पहुंचते हैं बच्चे

डॉक्टर बताते हैं कि बच्चों के लिए 1 घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए। लेकिन लगातार मोबाइल-टीवी देखने से बच्चों में मायोपिया रोग बढ़ रहा है। आंखों की यह वह बीमारी है जिसमें दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं, जबकि पास की वस्तुएं स्पष्ट दिखती हैं। यह तब होता है जब आंख की लंबाई बढ़ जाती है, जिससे प्रकाश रेटिना पर फोकस होने के बजाय उसके सामने केंद्रित हो जाता है। इससे सिरदर्द, आंखों में तनाव, और दूर देखने के लिए बच्चे आंखें सिकोड़ने लगते हैं।

स्क्रीन से बिगड़ रही बायोलॉजिकल क्लॉक

मानव शरीर में बायलॉजीकल क्लोक का विशेष विशेष महत्व होता है। रात होने के बाद ऑटोमेटिक नींद आ जाती है और उजाला होने पर नींद खुल जाती है। लेकिन अब रात-रात भर स्क्रीन के सामने बैठे रहने के कारण स्क्रीन की लाइट से बायलॉजीकल क्लॉक बिगड़ रही है। अब न सोने का समय निश्चित होता है और ना ही जागने का। नींद पूरी न होने से चिड़चिड़ापन, मानसिक बीमारियां घर कर रही हैं।

स्क्रीन के सामने 8-10 बार कम झपकती हैं आंखे

आई सर्जन   ने बताया कि सामान्यत: हर मिनट आंखें की पलकें 12-16 बार झपकतीं हैं। लेकिन मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी स्क्रीन के सामनें बैठने पर आंखों का झपकना 4-6 बार तक रह जाता है। हर उम्र के व्यक्ति स्क्रीन के सामने बैठने पर कांस्ट्रेट रहते हैं, इसलिए आखें झपकना कम हो जाती है। ऐसे में आंखों की नमी प्रभावित होती है और आंखें बाहरी वातावरण के अनुसार ढलने लगती हंै।

स्क्रीन की लाइट बच्चों सहित हर उम्र की व्यक्ति को प्रभावित कर रही है। चिंता का विषय यह है कि बच्चे जब तक अस्पताल पहुंचते हैं तब तक उनके चश्मे का नंबर काफी बढ़ चुका होता है। बच्चों के आंखों के आंसू की क्वालिटी भी गिर रही है, जिससे उन्हें मायोपिया के अलावा वयस्कों व बुजुर्गों में होने वाली ड्राई आई बीमारी भी हो रही है।

 

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