सात जन्मों का बंधन शादी: टूटे रिश्ते बढ़ता खर्च
क्षमा शर्मा अपने देश में विवाह आज भी एक महत्वपूर्ण संस्था है। बदले वक्त ने इसे अरबों के बाजार में भी तब्दील कर दिया। मंगनी से लेकर हल्दी, मेहंदी, प्रि-वैडिंग, प्रि-वैडिंग शूट और भी न जाने कौन-कौन से फंक्शन हर दिन जुड़ते चले जा रहे हैं। ये तब है जब विवाह बड़ी संख्या में टूट रहे हैं। हाल ही में एक खबर ने चौंकाया था कि चूंकि पति पत्नी के लिए कुरकुरे लाना भूल गया तो वह नाराज होकर मैके चली गई और वहां से तलाक के कागजात भिजवा दिए। लेकिन फिर भी शादी के अनाप-शनाप खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। ऐसी भी खबरें आती हैं कि शादी के लिए युवा बहुत बड़ी-बड़ी रकमों का लोन लेते हैं और लम्बे समय तक उसे चुकाते रहते हैं। बीच में शादी टूट गई तो दूसरी आफतें अलग से।
इसी बदले वक्त ने विवाह के नाम पर कुछ प्रयोग भी सिखाए हैं, जिन्हें विवाह नहीं कहा जाता। जैसे कि बहुत से जोड़े तमाम किस्म की जिम्मेदारी से बचने के लिए लिव-इन में रहना पसंद करते हैं। वे कहते भी हैं कि जब तक मन करे साथ रहो, जब रिश्ता न चले तो अलग हो जाओ। किसी भी तरह की कानूनी प्रक्रिया और भाग-दौड़ की जरूरत नहीं। लेकिन लिव-इन के रिश्ते जब टूट जाते हैं तो आज भी लड़कों के मुकाबले लड़कियों को इसकी आफत को ज्यादा झेलना पड़ता है। कई परिचित लड़कियों के साथ ऐसा होते देखा है। पश्चिमी देशों की तरह अब यहां साथी के लिए पार्टनर जैसे शब्द भी इस्तेमाल होने लगे हैं। पश्चिमी देशों में तो बाकायदा पार्टनर के साथ रहने के लिए एक कानूनी प्रक्रिया होती है। यदि ऐसे रिश्ते से बच्चे हैं तो उनकी जिम्मेदारी कैसे उठाई जाएगी। स्त्री-पुरुष और बच्चों के क्या अधिकार होंगे। इसी तरह उत्तराधिकारी का निर्णय कैसे होगा। सम्पत्ति किस तरह बंटेगी। यदि रिश्ता न चला तो किसका क्या अधिकार होगा। हर बात की लिखित कार्यवाही होती है। अपने यहां पार्टनर के साथ रहने की भी कुछ शर्तें हैं या नहीं, ये पता नहीं है। कायदे से बदले वक्त के साथ अगर युवा इस तरह के रिश्तों में जा रहे हैं तो इन पर नैतिकतावादी विचार लादने के मुकाबले इन सम्बंधों के लिए भी अलग से कानून बनने चाहिए।
वैसे दुनियाभर में कहा जा रहा है कि अकेलापन सबसे बड़ी महामारी के रूप में बढ़ रहा है। इसका बड़ा कारण परिवार का न होना है। ऐसा होता दिख भी रहा है। लेकिन यह बात तब तक शायद ही समझ में आती है जब तक हम युवा होते हैं। उम्र बढ़ने पर जब किसी सहारे की जरूरत होती है, तो आसपास कोई नहीं दिखता। जिन विचारों की लौ जलाए रखने के लिए परिवार से दूर हुए वे लौ भी बुझ चुकी होती हैं। आसपास कोई सुनने वाला तक नहीं होता। ऐसे लोग इन दिनों अपने देश में भी खूब दिखते हैं जो अस्सी-पचासी साल में अकेले रहते हैं। या वृद्धाश्रमों की शरण लेते हैं। इनमें से बहुतों को परिवार की उपेक्षा के कारण इन स्थानों पर जाना पड़ता है। लेकिन बहुत से ऐसे भी होते हैं जिनका कोई परिवार ही नहीं है। ऐसे कई लोगों को आसपास देखती हूं, जिन्होंने परिवार नहीं बसाया। ये अक्सर अकेले आते-जाते और बैठे दिखाई देते हैं। और अक्सर आते-जातों को आशा भरी नजरों से देखते हैं कि कोई तो हो जो कुछ देर पास बैठकर हाल-चाल पूछ ले।
इन्हीं प्रसंगों में पिछले दिनों, जापान के बारे में एक खबर पढ़ी कि वहां फ्रेंडशिप मैरिज का चलन बढ़ रहा है तो इस बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। इस बारे में पढ़ने लगी। यहां बताते चलें कि जापान का समाज अकेलेपन की वजह से लगभग तबाही की स्थिति में है। अधिकांश लोग अकेले रहते हैं। युवा विवाह नहीं करना चाहते। जिनका विवाह हुआ है वे बच्चे नहीं चाहते। इसीलिए वहां सरकार युवाओं को परिवार बसाने और बच्चे पैदा करने के लिए तरह-तरह के फायदे देने की बात भी करती है, मगर वहां लोग शादी ही नहीं करना चाहते। इसीलिए फ्रेंडशिप मैरिज के बारे में जानने की जिज्ञासा और बढ़ी।
जितना पढ़ती गई हैरान होती गई। इस तरह के विवाह में दम्पति के बीच में किसी तरह का भावनात्मक या शारीरिक रिश्ता नहीं होता है। इस तरह की शादियों की संख्या जापान में दिन पर दिन बढ़ रही है। ऐसे लोगों के बारे में बताया जाता है कि या तो वे होमो सेक्सुअल हैं या हीट्रोसेक्सुअल। वहां लोग पारंपरिक विवाह से दूर हो रहे हैं। कोलोरस नाम की एजेंसी इस तरह के विवाह कराती है। अब तक सैकड़ों विवाह करा चुकी है। ऐसे दम्पति बच्चे भी पालते हैं। ये लोग या तो सरोगेसी का सहारा लेते हैं अथवा बच्चे गोद ले लेते हैं। कानूनी रूप से पति- पत्नी होते हैं लेकिन किसी भी तरह का रिश्ता इनके बीच में नहीं होता है। ये जोड़े इस शादी से बाहर किसी और से, अपने मनपसंद व्यक्ति से भी सम्बंध रख सकते हैं।
शादी से पहले ये युवा आपस में सारे मसलों पर बातचीत करते हैं। एक ऐसे जोड़े ने कहा कि फ्रेंडशिप मैरिज का मतलब सरल शब्दों में ये है कि एक जैसी रुचियों वाले रूममेट को पाना। एक लड़की ने कहा कि मैं किसी की अच्छी प्रेमिका नहीं हो सकती, न मैं अच्छी पत्नी बन सकती हूं, लेकिन मैं अच्छी दोस्त हो सकती हूं। इसीलिए मैं किसी ऐसे दोस्त की तलाश में थी, जिसकी रुचियां मुझसे मिलती हों। हम एक-दूसरे से हर विषय पर बात कर सकें। एक-दूसरे के साथ से आनंदित हो सकें। जब ऐसा व्यक्ति मिला तो मैंने फ्रेंडशिप मैरिज के बारे में सोचा। ऐसी शादियां वे जोड़े चुन रहे हैं, जिनकी आय अच्छी खासी है और वे किसी रिश्ते के मुकाबले एक अच्छे साथी की तलाश में हैं। इस तरह की शादी के विशेषज्ञ एक वकील ने इसे परिभाषित करते हुए कहा- वे जो दोस्त अच्छे हैं, लेकिन लवर्स नहीं हैं।
बताया जा रहा है कि जापान की एक सौ चौबीस मिलियन जनसंख्या में एक प्रतिशत लोग इस तरह की शादी का चुनाव कर रहे हैं। इन शादियों में कानूनी तौर पर हर काम का बंटवारा भी होता है। कौन कब घर की देखभाल करेगा, कपड़े कौन धुलवाएगा। कौन-सी जिम्मेदारी किसकी कब-कब होगी। लोग जापान में ये भी कह रहे हैं कि वह दिन दूर नहीं जब यहां पारंपरिक विवाह खत्म हो जाएंगे।
हालांकि देखा जाए तो फ्रेंडशिप मैरिज में भी लोग जिम्मेदारियां उठा ही रहे हैं। वे साथी पाने के लिए बहुत-सी शर्तें भी मान रहे हैं। बच्चे भी पाल रहे हैं। ऐसे में कई बार यह भी लगता है कि नए के नाम पर कोई नई परंपरा चला दी जाए, ठीक है। लेकिन इसे देखते हुए पारंपरिक विवाह में ही ऐसी क्या बुराई है।