व्यंग्यकथा ): धरती पर चांद

Update: 2024-09-10 05:46 GMT

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एक पुस्तक के कार्यक्रम का आमन्त्रण मिला। चूंकि लेखक बड़े आदमी थे सो कार्यक्रम भी एक बड़े होटल में रखा गया। छोटा लेखक अपनी पुस्तक का विमोचन किसी भी स्कूल, धर्मशाला के कमरे या बरामदे में एक कप चाय के साथ निपटा देता है।

बड़े होटल में भव्य समारोह के साथ "प्लेट सिस्टम" होता है और लोगों की जिज्ञासा भी पुस्तक से अधिक "प्लेटों" में होती है। सो ऐसे समारोह सफल हो ही जाते है।

बहरहाल ये लेखक की तीसरी पुस्तक है। पहली पुस्तक भजनों की थी.. जो अस्सी के दशक के फिल्मी गीतों की पैरोडी पर आधारित थे.. दूसरी पुस्तक “ मेरी श्रेष्ठ कविताएं में उनकी चालीस कविताएं थी… संभवत लिखी उन्हौने चार सौ थी.. पर चालीस श्रेष्ठ थी और उनका एक पुस्तक के मार्फ़त लोगों तक पहुंचना अत्यन्त जरूरी था।

इस बार वे “धरती पर चांद” नामक पुस्तक का विमोचन करवा रहे है जिसमें उनकी चौबीस गज़लें है। निसन्देह श्रेष्ठ ही होगी।

खैर.. विमोचन की भव्य तैयारियां की गयी .. इस विशेष दिन के लिए उन्हौने सिल्क का कुर्ता भी सिलवाया। पिछले विमोचन के दौरान सूट में थे। किसी ने बता दिया होगा कि लेखकों पर कुर्ते ज्यादा फबते है सो इस बार उन्हौने फबने की भी पूरी कोशिश की।

इस विमोचन समारोह में मंच पर कुल ग्यारह लोग थे .. दो उच्च कोटी के नेता, तीन नामी उद्योगपति, दो रिश्तेदार.. (दोनो समधि.. समधि को अपने कद का अहसास कराने का अलग ही मजा होता है), दो साहित्यकार (लगभग उन्ही की श्रेणी के ) .. एक साधारण संत और एक स्वयं गज़लकार।

इस शानदार मंच का संचालन उनके एक भतीजे ने किया.. (एक महिला संगीत में देखा था.. अच्छी पकड़ है )

इस भतीजे ने अपने “लेखक ताऊ” के सम्मान में ताऊ चालीसा गायी.. हाॅल में खूब तालियां बजी.. ताऊजी ने इस चालीसा पर कोई चालीस बार आंसू पौछें होगें ।

सौ- सवासौ लोग उपस्थित थे जिनमें चालीस से अधिक तो घरवाले थे। बाकि अड़ौसी- पड़ौसी, मित्र, समाज के लोग.. और उनकी श्रीमतीजी की “किट्टी” का सजाधजा पूरा सर्कल..जो कार्यक्रम से पहले फ्लेक्स के आगे “सेल्फियों” में व्यस्त था .. अब समारोह की भव्यता को अलग ही ऊंचाईयां दे रहा था।..

मैं सोच रहा था ऐसे समारोह के लिए लेखन से ज्यादा लोगों पर पकड़ होना जरूरी है ।

खैर.. मंच पर संतजी ने केवल आशीर्वचन बोले बाकि सबने साहित्य के महत्व और लेखक के व्यक्तित्व पर तगड़े भाषण दिये.. हालांकि लोग बोर हो रहे थे क्योंकि इन दोनों के बारे में ये लोग ऑलरेडी बहुत कुछ जानते है। कुछ नयापन नहीं था।

नयेपन की संभावना भोजन में जरूर थी.. मगर वो भी अभी तक बर्तनों में कैद था।

उद्योगपति बार बार घड़ी देख रहे थे.. और नेता लोग आंगतुको की संख्या लेखक भावुक होकर सबको देख रहे थे। इस दिन के दर्शनार्थ ही गज़लें लिखी गयी.. लिखना सार्थक हुआ।

उन्हौने घोषणा की वे अगली पुस्तक “रामजी” पर लिखने वाले है ( रामजी न चाहे, ये अलग बात है )

उनके साले साहब ने सारी व्यवस्था संभाल रखी थी। वे खाने के काउन्टर के पास एक पैर पर खड़े थे। इशारा पाते ही खाने के बर्तनो के ढक्कन खोल दिये गये। कुर्सियां सरकने की खरखराहट के बाद लोगों के पांव भोजन की प्लेटों की तरफ उसी तरह भागने लगे.. जैसे ढलान की तरफ पानी भागता है । कार्यक्रम में एकाएक ताजगी आ गयी। सफेद तश्तरियां पकड़े लोग चिमटे से श्रेष्ठ रसगुल्ले इसी तरह चुनने लगे जैसे लेखक ने पुस्तक के लिए श्रेष्ठ गज़ले चुनी।

समारोह अपने चरम पर था। इधर लेखक अभी भी भाव विभोर थे.. सहसा मुझ पर नजर पड़ गयी.. मेरे आने का आभार व्यक्त किया, फिर हाथ पकड़ कुर्सी की तरफ ले गये , मैं डर गया कि कहीं गजलेॅ ना सुनाने लग जाये ..

बोले कि.. आऔ.. आपको बताता हूं कि ये गजल संग्रह मैनें क्यों लिखा..

मेरे हाथ में खाने की प्लेट थी..

मैं संभलते, बैठते हुए बोला कि.. बिल्कुल .. बिल्कुल बताइये सर.. क्यों कि मैं खुद भी आपसे यही पूछने वाला था कि आखिर आपने.. ये पुस्तक क्यों लिखी ..??

(Kgkadam)

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