पाप के प्रति धिक्कार का भाव होना चाहिए– मुनि युग प्रभ म.सा.

By :  vijay
Update: 2025-08-10 11:58 GMT
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निम्बाहेड़ा। निंबाहेड़ा के शांति नगर स्थित नवकार भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैन संत मुनि  युग प्रभ जी महाराज साहब ने कहा कि पाप को वही त्याग सकता है, जो पापों से घृणा और भय करता है। लेकिन वर्तमान समय में अधिकांश लोग पाप से डरने के बजाय पाप में आनंद लेते हैं, जबकि यही पाप हमारी आत्मा को भव-भव में भटकाता है।

मुनि  ने कहा कि धर्म का पालन सत्कार भावपूर्वक होना चाहिए और पापों को धिक्कार के साथ छोड़ना चाहिए। उन्होंने श्रावक के छठवें गुण पापभीरुता (पाप से भय) पर विशेष जोर देते हुए कहा कि ज्ञानी पुरुषों ने तीन प्रकार के मानव बताए, जिनमें पहला जघन्य प्रकृति का मानव, जो निर्लज्ज होकर पाप करता है। मध्यम प्रकृति का मानव, जो विवशता में पाप करता है तथा उत्तम प्रकृति का मानव, जो किसी भी परिस्थिति में पाप नहीं करता। उन्होंने कहा कि आज दुनिया में अधिकांश लोग जघन्य प्रकृति के हैं, जो पाप करके गर्व महसूस करते हैं और कहते हैं ऐसा काम अगर मैं नहीं करूंगा, तो कौन करेगा?

18 पापों में प्रथम प्राणातिपात पर प्रकाश डालते हुए मुनि श्री ने कहा कि हिंसा करने वाला व्यक्ति अगले जन्म में अल्पायु को प्राप्त करता है। वह कम उम्र में ही दुर्घटना से मृत्यु को प्राप्त कर लेता है या गर्भ में ही नष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे लिए प्रभु की आज्ञा ही असली धर्म है। प्रभु स्पष्ट कहते हैं "हिंसा मत करो।"

मुनि श्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे विद्यार्थी लिखते समय गलती कर देता है, तो रबर से मिटाकर पुनः सही कर लेता है। लेकिन यदि वह गलती करने के डर से लिखना ही बंद कर दे, तो वह कभी आगे नहीं बढ़ पाएगा। उसी प्रकार, यदि अनजाने में पाप हो जाए तो उसे आलोचना और प्रायश्चित से कम किया जा सकता है।

धर्मसभा के अंत में मुनि श्री ने उपस्थित जनसमूह को पाप से घृणा करने, अहिंसा का पालन करने और आत्मशुद्धि की दिशा में निरंतर प्रयासरत रहने का संदेश दिया।

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