चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर आयड़ में आर्यिका प्रशन्नमति की निश्रा में धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न
उदयपुर । झीलों एवं धर्मनगरी उदयपुर में 4000 वर्ष प्राचीन तांबावती नगरी श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर आयड़ में चल रहे भव्य चातुर्मास में कई अनेकों प्रकार की प्रतियोगिता हो रही है।
मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष भंवरलाल गदावत ने बताया कि बाल योगिनी जिनवाणी सेवा चंद्रिका वात्सल्यमूर्ति आर्यिका प्रशन्नमती माताजी ने आकिंचन धर्म के बारे में बहुत ही बारिकी से समाज जन को संबोधन किया। आर्यिका ने बताया कि उत्तम अकिंचन्य धर्म - सर्वोच्च अपरिग्रह उत्तम आकिंचन्य धर्म - सर्वोच्च अनासक्ति का अर्थ, जैन शास्त्रों से उद्धरण, वास्तविक जीवन के उदाहरणों के साथ इसकी व्याख्या। जो व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति के बुरे विचार को त्याग देता है, वही व्यक्ति सम्पत्ति का त्याग कर सकता है। जिस भावना-प्रतीति-अनुभूति से ग्रहण या त्याग किया जाता है उसी भावना को मन से निकालने का पुरुषार्थ ही अकिंचन भाव है। आत्मा एकल, एकान्त, अनन्य और स्वतंत्र है, यही आकिंचन्य धर्म है। सुख दुख में समत्व भाव ही आकिंचन्य है। जीवन में अध्यात्म से बड़ा सहारा कोई नहीं है। संसार में जब तुम्हें कोई सँभालने वाला और सहारा देने वाला न हो, जब तुम्हारे आँसू पोंछने वाला कोई नहीं होगा तब अध्यात्म ही तुम्हें सहारा देगा और तुम्हारे आँसू पोंछेगा। उत्तम आकिंचन्य धर्म का पालन करते हुए जीवन में अहम भाग सदा के लिए त्यागने का प्रयास होना चाहिए।
महिला मंडल अध्यक्ष मंजू गदावत व आरती चित्तौड़ा ने बताया की आर्यिका के सानिध्य कई तरह की प्रतियोगिता की जा रही है । इस अवसर महामंत्री सुरेश लखावला, ब्रजकिशोर जोलावत, खुबीलाल चित्तौड़ा, ओम चित्तौड़ा, प्रेम प्रकाश चित्तौड़ा सहित समस्त समाज जन एवं ट्रस्ट के सदस्य मौजूद रहे।