यूपी, उत्तराखंड, कश्मीर, राजस्थान सहित कई राज्यों की लोक संस्कृति की दिखी झलक
उदयपुर। धमाल है... कमाल है...! वाकई, हरियाणा की मस्ती के प्रतीक ‘धमाल’ डांस को देख ठसाठस भरे मुक्ताकाशी मंच पर दर्शकों के मुंह से तब यही टिप्पणी निकली, जब उन्होंने महाभारत काल से होने वाले इस अहीर समुदाय के नृत्य में हरियाणवी लोक संस्कृति साकार होते देखी। दरअसल, हरियाणा के गुड़गांव और आसपास के क्षेत्र के अहीर समुदाय के किसान अच्छी फसल होने की खुशी में यह परंपरागत डांस करते हैं। जाहिर है, इस डांस में जहां हरियाणा का अल्हड़पन, मस्ती दिखी वहीं इसने लयबद्धता, खूबसूरत स्टेप्स, हावभाव और धमक ने अपनी अलग ही छाप छोड़ दर्शकाें का दिल जीत लिया। मुक्ताकाशी मंच पर भी शनिवार को इस नृत्य में जहां परंपरागत ढोल, ताशा, नगाड़ा और बीन जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते हुए नर्तकों ने इनकी धुन पर डफ और लाठियों के साथ नृत्य कर खूब वाहवाही लूटी।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल के राय बेंसे और नटुआ में एक्रोबेटिक युद्ध कौशल, महाराष्ट्र के लावणी लोक नृत्य में नर्तकियों के शृंगार व भावभंगिमाएं, उत्तर प्रदेश के पारंपरिक ढेड़िया लोक नृत्यों की तालबद्ध प्रस्तुतियों ने दर्शकों के दिलों के तारों को झंकृत कर दिया। इस शाम की हर प्रस्तुति ने उत्सव की ‘लोक के रंग-लोक के संग’ थीम को साकार करते हुए मेवाड़ के कलाप्रेमी दर्शकों की खूब दाद पाई। इनमें राजस्थान के कालबेलिया डांस में नर्तकियों के उल्टी घुम के बिना हाथाें के सहारे मुंह से नीचे रखा रुमाल और आंख से जमीन पर रखा सिक्का उठाने के कमाल ने तो धमाल ही मचा दी।
पुरुलिया छाऊ में शास्त्रीय शैली के साथ मार्शल आर्ट-
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया छाऊ डांस में जब डांसर्स ने शास्त्रीय नृत्य शैली में मार्शल आर्ट के खूबसूरत सम्मिश्रण के साथ जब महाभारत और रामायण के प्रसंग जीवंत किए तो कलाप्रेमियों ने मंत्रमुग्ध हो तालियों की गड़गड़ाहट से शिल्पग्राम गूंजा दिया।सिद्दि धमाल का कमाल तो शनिवार को भी दर्शकों के सिर चढ़कर बोला, इस प्रस्तुति में कई बाद दर्शक दांतों तले अंगुली दबाते देखे गए, कई बार स्तब्ध से हुए, लेकिन डांस की रोमांचकता और अनूठी नृत्य शैली को सराहना नहीं भूले, तो लोगों के फेवरिट से बने कर्ण ढोल की प्रस्तुति ने भी दर्शकों को खूब रिझाया।
छापेली की छेड़छाड़ ने गुदगुदाया, िबहू भी खूब भाया-
इनके साथ ही उत्तराखंड के मीठी छेड़छाड़ वाले छापेली लोक नृत्य ने दर्शकों को गुदगुदाया और उनकी तालियां बटोरी। वहीं, बिहू डांस भी दर्शकों को खूब भाया। बिहू ने असम की छाप छोड़ते हुए वहां की लोक संस्कृति खूबसूरती से पेश की। जम्मू के पारंपरिक डोगरी लोक नृत्य जगरना के साथ ही राजस्थान के सहरिया आदिवासी संस्कृति के सहरिया स्वांग डांस व मणिपुर की मार्शल आर्ट से लबरेज फोक प्रस्तुति थांग-ता स्टिक ने दर्शकों को खूब रोमांचित किया। वहीं, पंजाब का भांगड़ा पर तो पूरा शिल्पग्राम ही झूम उठा। मुक्ताकाशी मंच के दर्शक अपनी जगह पर खड़े होकर झूमने लगे। कार्यक्रम का संचालन मोहिता दीक्षित और माधुरी शर्मा ने किया।
‘हिवड़ा री हूक’ का छाया जादू-
शिल्पग्राम के बंजारा मंच पर चल रहे ‘हिवड़ा री हूक’ कार्यक्रम के सांतवें दिन शनिवार को भी हर उम्र के मेलार्थियों ने खुद की प्रस्तुति देकर प्रतिभा का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम समन्वयक सौरभ भट्ट ने प्रश्नोत्तरी से कार्यक्रम को और रोचक बना दिया। क्विज में सही उत्तर देने वालों को हाथों-हाथ उपहार भी दिए जा रहे हैं।
थड़ों पर प्रस्तुतियां देख मेलार्थी मंत्रमुग्ध-
शिल्पग्राम में विभिन्न थड़ों पर सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक अलग-अलग प्रस्तुतियां मेलार्थियों का भरपूर मनोरंजन कर रही हैं। इनमें शुक्रवार को मुख्य द्वार आंगन पर आदिवासी गेर, आंगन के पास बाजीगर, देवरा पर तेरहताली, चौपाल पर भवई, बन्नी पर कुच्छी ज्ञान, सम पर मांगणियार गायन, भूजोड़ी पर बीन जोगी, पिथौरा पर गलालेंग (लोक कथा), पिथौरा चबूतर पर चकरी, बड़ा बाजार पर घूघरा-छतरी (मीणा ट्राइब), कला कुंज फूड कोर्ट पर पावरी (महाराष्ट्र-गुजरात का कोकणा जनजाति का नाच), गाेवा ग्रामीण पर कठपुतली, दर्पण द्वार पर सुंदरी, दर्पण चौक पर महाराष्ट्र और दादरा व नगर हवेली का पारंपरिक आदिवासी नृत्य तारपा और पीपली पर नाद की प्रस्तुतियां ने भी मेलार्थियों को विभिन्न संस्कृतियों से रू-ब-रू करवाते हुए खूब मनोरंजन किया ।
वहीं, शिल्पग्राम्र प्रांगण में विभिन्न स्थानों पर घूमते हुए बहरूपिये रोजाना अलग-अलग रूप और अदाकारी से मेलार्थियों का खासा मनोरंजन कर रहे हैं। इसके अलावा प्रांगण में स्कल्पचर्स, खूबसूरत झोंपड़ों सहित कई स्थान मेलार्थियों के फेवरिट सेल्फी पॉइंट्स बन चुके हैं।
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आज (रविवार) शाम के खास आकर्षण-
मुक्ताकाशी मंच पर शनिवार शाम के कार्यक्रम में गुजरात और राजस्थान के हर दिल-अजीज डांग, राजस्थान के प्रसिद्ध घूमर व ब्रज क्षेत्र के मनभावन मयूर डांस की प्रस्तुतियां रिझाएंगी। वहीं, राजस्थान के मेवात क्षेत्र के भपंग वादन से लोक कलाकार श्रोताओं का दिल जीतेंगे। इनके साथ ही सिद्धि धमाल डांस की धमक और तबला, पखावज, ढोलक, नगाड़ा, सारंगी, सितार जैसे वाद्ययंत्रों पर शास्त्रीय और लोक धुनों की प्रस्तुति ताल कचहरी, सिक्किम के भूटिया लोगों का लोक नृत्य सिंघी छम भी रिझााएगा। इनके अलावा लावणी, पुरुलिया छाऊ, ढेड़िया, पंजाब का भांगड़ा, ओडिशा का गोटीपुआ असम का बिहू आदि लोकप्रिय लोक नृत्य भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेंगे।
