रसनेन्द्रिय पर विजय पाने के लिए आयंबिल तप सर्वश्रेष्ट उपाय है : जैनाचार्य महाराज
उदयपुर, । मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।
संघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि मालदास स्ट्रीट आराधना भवन में आत्मिक साधना में विकास पाने के लिए पांच इन्द्रियों पर विजय पाना अति आवश्यक है। सभी इन्द्रियों पर विजय पाने के लिए रसनेन्द्रिय पर विजय पाना जरूरी है। शरीर को प्रतिदिन भोजन की आवश्यकता रहती है। इसलिए नित्य उपवास करना साधक आत्मा के लिए भी अशक्य है। अत: उपवास से जैन धर्म में आयंबिल तप बताया है। आयंबिल तप में मात्र उबाला हुआ अन्न का भोजन ही लेना होता है। घी-तेल,गुड़-शक्कर, मेवा-मिठाई आदि स्वादिष्ट भोजन के त्याग पूर्वक आयंबिल तप किया जाता है। इस तप में शरीर को तो पोषण मिलता है, लेकिन रसनेन्द्रिय को पोषण नहीं मिलता है। प्रतिवर्ष आसोज और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में अंतिम नौ दिनों में नवपद ओली की आराधना आयंबिल तप से होती है। इससे अतिरिक्त वर्धमान तप की ओली की आराधना भी आयंबिल तप से होती है। यह तप जीवन भर भी किया जा सकता है। एक-एक दिन की वृद्धि करते हुए अंत में उपवास पूर्वक सौ-सौ ओली की आराधना होती है। कुल 14 वर्ष 5 महिनो तक 5050 आयंबिल और 100 उपवास से वर्धमान तप की आराधना पूर्ण होती है। निकट मोक्षगामी जीवात्मा, का ही इस तप की आराधना करने का सुअवसर प्राप्त हो सकता है। प्रवचन के बाद गाजे-बाजे के साथ पूज्य जैनाचार्य आदि साधु-साध्वी-श्रावक- श्राविका के पहले आदीश्वर कॉलोनी में स्थित सायरा निवासी अंशुल भरत भाई पोरवाल के ग्रहांगण में हुए।
कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि 28 सितंबर को प्रात: 9.15 बजे विदाई समारोह होगा एवं 2 अक्टूबर से महावीर विद्यालय-चित्रकूट नगर में उपधान तप का शुभारंभ होगा।