चेतन औदिच्य ने अंतरराष्ट्रीय कला कार्यशाला में किया प्रभावी प्रदर्शन
उदयपुर। उदयपुर के कलाकार चेतन औदिच्य ने गोरखपुर में विश्व शांति स्थापना पर चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कला कार्यशाला और संगोष्ठी में भाग लेकर विश्व शांति पर पेंटिंग का सृजन किया। ललित कला, लोक कला, मंचिय कला को समर्पित ललिता न्यास द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में कई देशों के कलाकारों के बीच रहकर चेतन ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर मेवाड़ और यहां के समकालीन कला परिप्रेक्ष्य पर अपनी कलाकृतियां बनाकर प्रदर्शित की ।
न्यास के अध्यक्ष डॉ भारत भूषण ने बताया कि कार्यक्रम के मुख्य अभ्यागत नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, नई दिल्ली के डायरेक्टर जनरल डॉ. संजीव किशोर गौतम थे। उन्होंने कहा कि कलाओं का काम महज सौन्दर्य का अंकन और धनोपार्जन करना ही नहीं है बल्कि चित्त शुद्धि के साथ-साथ समाज में शांति की स्थापना करना भी है. ललिता न्यास की अंतर्राष्ट्रीय मैत्री को समर्पित इस संगोष्ठी की मुख्य संयोजिका डॉ सुदीप्ता बी भूषण थी। संगोष्ठी के मुख्य विषय 'वैश्विक शांति में ललित कलाओं का योगदान ' पर उदयपुर के कलाकार चेतन औदिच्य ने अपने वक्तव्य में कहा कि समस्त विश्व के देश आज भिन्न भिन्न कारणों से अनेक खेमों में बंट कर एक दूसरे के विरुद्ध खड़े हैं, युद्धों का आसन्न संकट सामने है।
ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी दुनिया के तमाम देशों के कलाकारों की आपस में एकता है। इसका कारण कलाओं की शक्ति का होना है। अब दुनिया को हथियारों की ताकत नहीं बल्कि कलाओं की शक्ति ही बचाएगी। कार्यशाला में चेतन औदिच्य ने प्रतीकात्मक रूप से एक युवती को चित्रित किया है जो बारूद की गंध के विरुद्ध फूलों पर रीझ रही है।
कला कार्यशाला एवं संगोष्ठी में प्रमुख रूप से कला विमर्श तथा विश्व शांति पर अनेक सत्रों में देश विदेश के कलाकारों ने रेंपस परिसर में पेंटिंग बनाई। इनमें प्रो. ईश्वर दयाल , डॉ. चन्द्र शेखर काले, मनोज पवार, अजीत वर्मा, चेतन औदिच्य, नंदलाल, सुरेन्द्र बी.जगताप, शैलेन्द्र सिंह , किशोर , जूजू ,कांचा सहित पच्चीस कलाकार शामिल रहे। प्रोफेसर ईश्वर दयाल ने समकालीन मुहावरे में अपनी पेंटिंग में भविष्य में जन्म लेने वाली सद्भावी मनुष्यता को प्रतीकात्मक माध्यम से दर्शाया। डॉ काले की कृति में श्वेत धवल संघर्षों से गुजर रही प्रकृति और आशाओं की स्वर्णिमा प्रदर्शित की गई।
दिल्ली के चित्रकार डॉ शैलेन्द्र सिंह ने विश्व की रंगीनियत को अपनी कुक्कुट कृति में दर्शाया। मनोज पंवार की कलाकृति आशाओं का वातायन खोलने वाली थी। बंबई के प्रसिद्ध कलाकार सुरेन्द्र जगताप ने अनेक द्वंद्वों से गुजरती आधी आबादी के प्रतीक रूप में एक युवती को मानवीय संवेदनाओं के साथ उकेरा है। नेपाल के कलाकार किशोर ने शांति का संदेश उपस्थित करते बुद्ध को रचा । पूणे के कलाकार चंद्रशेखर कुमावत ने ब्रह्मांडीय ऊर्जा के रूप में शिव तथा शक्ति को अपनी कृति में स्थान दिया है।