सुख- दु:ख का आधार मन ही है : साध्वी जयदर्शिता

उदयपुर,। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कच्छवागड़ देशोद्धारक अध्यात्मयोगी आचार्य श्रीमद विजय कला पूर्ण सूरीश्वर महाराज के शिष्य गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय कल्पतरु सुरीश्वर महाराज के आज्ञावर्तिनी वात्सलयवारिधि जीतप्रज्ञा महाराज की शिष्या गुरुअंतेवासिनी, कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि शुक्रवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। वहीं सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। इस दौरान आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने जैन ने प्रवचन में बताया कि कर्मबंध के चार हेतु बने है मिथ्यात्म, अविरति, कषाय और योग। मिथ्यात्म याने भगवान की आज्ञा नहीं मानना आज्ञा में शंका रखना वो प्रथम गुरु स्थानक होता है। दूसरा अविरति या हमारे जीवन में कुछ भी नियम न होना अविरति चार गुण स्थान तक होते हुए। अविरति वाले श्रावक को जलते हुए लोखड के गोल की उपमा दी गई है। साध्वी ने कहा कि जिनका मन कमजोर है, वे दु:खी हैं और जिनका मन अधिक कमजोर है वे अधिक दुखी है। यानि कि यदि हमें सुखी होना हो तो हमारा मन ज्यादा पावरफुल होना चाहिए हमारे सुख-दुख का आधार मन पर ही है। पावरफुल मन-सुख और कमजोर मन - दु:ख। इस प्रकार सुख दु:ख का सिद्धान्त निश्चित हो गया। हमें हमारे मन पर विशेष ध्यान देना है। प्रवचन के बाद म्यूजिकल खेल खेलाए गए।
इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागोरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, चतर सिंह पामेच, गोवर्धन सिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, दिनेश भण्डारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।