प्राकृतिक खेती मृदा एवं मानव स्वास्थ्य के लिए जरूरी - डॉ. जलवानियाँ

By :  vijay
Update: 2025-03-15 10:05 GMT
उदयपुर राष्ट्रीय कृषि विकास योजनान्तर्गत अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा प्रायोजित एवं कृषि विज्ञान केन्द्र शाहपुरा द्वारा दो कृषक प्रशिक्षणों का आयोजन दक्षिणी राजस्थान में प्राकृतिक खेती का सार्वजनिकरण एवं प्रक्षेत्र अनुसंधान विषय पर किया गया। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. सी. एम. यादव ने प्राकृतिक खेती के महत्त्व पर चर्चा करते हुए बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने एवं किसानों में प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूकता लाने के लिए निरन्तर प्रयास किए जा रहे है साथ ही प्राकृतिक खेती के विस्तार एवं किसानों में क्षमता विकास के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र पर संस्थागत प्रशिक्षण आयोजित किए जाते है जिनमें जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत, वापसा, दशपर्णी अर्क, ब्रह्मास्त्र, अग्नि अस्त्र आदि का बनाना और कृषि में इनकी उपयोगिता के बारे में किसानों को प्रायोगिक एवं सैद्धान्तिक आधार पर अवगत करवाया जाता है। उद्यान वैज्ञानिक डॉ. राजेश जलवानियाँ ने बताया कि पिछले कई वर्षों से हम रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुन्ध प्रयोग फसलों पर करते आ रहे है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त हो चुकी है और भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बदलाव हो रहे है जो किसानों के लिए काफी नुकसान दायक है। पशपुालन वैज्ञानिक डॉ. एच.एल. बुगालिया ने बताया कि प्राकृतिक खेती बिना लागत एवं उपलब्ध संसाधनों के द्वारा ही की जा सकती है जिससे किसानों पर आर्थिक भार नही पड़ता है। तकनीकी सहायक गोपाल लाल टेपन ने प्राकृतिक खेती के प्रमुख घटक बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत, दशपर्णी, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र एवं अग्नि अस्त्र बनाने हेतु आवश्यक सामग्री एवं बनाने की विधि को विस्तार से समझाया। प्रशिक्षणों में 104 कृषक एवं कृषक महिलाओं ने भाग लिया।  

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