उदयपुर । तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में कलापूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता , जिनरसा , जिनदर्शिता व जिनमुद्रा महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास संपादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि गुरुवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। चातुर्मास में एकासन, उपवास, बेले, तेले, पचोले आदि के प्रत्याख्यान श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन ले रहे हैं और तपस्याओं की लड़ी लगी हुई है। आयड़ तीर्थ में 9 दिन में 9 लाख नवकार महामंत्र के जाप होंगे। जिसमें साध्वी जयदर्शिता आदि ठाणा का सान्निध्य मिल रहा है।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि गुरुवार को आयड़ तीर्थ पर धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता ने कहा कि अहिंसा का एक नाम रक्षा भी है। सबसे पहले तीर्थंकर भगवान सभी जीवों को भाव से रक्षा सूत्र बांधते हैं। वह कहते हैं कि व्यापार, भाषा, बोलचाल, रहन-सहन सभी में अहिंसा को स्थान दें। ज्ञानी कहते हैं कि हमारे बुरे भाव ही हमें संकट में डालते हैं। जैसे हमारे मन के भाव होते हैं वैसी ही सामने वाले की प्रतिक्रिया होती है। दुष्प्रवृत्ति का दुष्फल व शुभ प्रवृत्ति का सुफल मिलता है। हम सभी को सदैव हित-मित, परिमित शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। मन का मीटर तो कोई नहीं पढ़ सकता पर वचनों को सुनकर सामने वाला यह जान लेता है कि हम कैसे हैं? वास्तव में वचनों को बंदूक की गोली कहा गया है अत: वचन सोच समझ कर बोलना चाहिए। यदि हम दया करेंगे तो बदले में दया ही मिलेगी। हमें सद्बुद्धि के साथ सद्प्रवृत्ति करनी चाहिए तभी हमारी रक्षा होगी। जीवन में सहयोग के अनेक अवसर आते हैं पर सहयोग अस्थाई होता है। सहयोग कभी अक्षय नहीं होता। अक्षय तो सिद्धि का सुख है।