उदयपुर, । पशुपालन प्रशिक्षण संस्थान के उपनिदेशक डॉ. सुरेन्द्र छंगाणी ने बताया कि राजस्थान की सभ्यता एवं संस्कृति में शीतला सप्तमी एवं अष्टमी का पर्व सनातन काल से मनाया जा रहा है। शीतला सप्तमी एवं अष्टमी को एक दिन पहले की शाम को बने हुए पकवान जिसमें अक्षर, पूड़ी एवं चावल की मात्रा ज्यादा होती है अतिरिक्त बचा हुआ खाना जिसे दूसरे दिन एक धार्मिक स्थल पर सभी धार्मिक लोगों द्वारा रख दिया जाता है जिससे निराश्रित जानवर (अधिकतर सांड और गाय) अत्यधिक मात्रा में बासी खाना खा लेते है इसके कारण से एसिडोसिस नामक रोग होने की संभावना अत्यधिक रहती है तथा एक्यूट आफरा रोग से जानवरो की मुत्यु हो जाने की संभावना भी प्रबल रहती है प्रायः इस तरह की समस्याओं में देखा जाता है कि जब तक पशु चिकित्सक पशु के पास ईलाज के लिए पहुंचता है तब तक उसकी स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है तथा पशु कुछ ही समय में दम तोड़ देता है डॉ. छंगाणी ने आमजन से आग्रह किया है कि वे इस बात का पूर्ण ध्यान रखे कि निराश्रित पशुओं के बासी खाना खाने में न आये और न ही उन्हे खिलाने का प्रयास करें एवं पशुधन को नष्ट होने से बचाने में अपना पूर्ण सहयोग करें।