जहां कुटिलता है,वहां धर्म के बीज अंकुरित हो ही नही सकते-जिनेन्द्रमुनि मसा
गोगुन्दा
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर गौशाला उमरणा स्थित स्थानक भवन में जैन संत जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि हदय की वक्रता का नाम ही माया है।कुटिल व्यक्ति वक्रता एवं माया से ओतप्रोत रहता है।अतः वहा धर्म का भाव ठहर नही सकता ।मुनि ने कहा कि नमक के बर्तन में क्या दूध का वास्तविक स्वाद बना रह सकता है?नही,कभी नही।जीवन में धर्म की ज्योति जगानी है तो वक्रता की क्षार भूमि को स्वच्छ करे।माया से अपने आपको बाहर निकालने का प्रयत्न करना चाहिए।जो माया के अंधकार से हट गया,उसी ने परम ज्योति के दर्शन किये है।माया से मुक्त जीवन ही आनन्द की अनुभूति दे सकता है तथा जन्म जन्म के दुःखों को दूर कर सकता है।संत ने कहा माया के जूठे बंधन में बंधकर निज धर्म से विमुख बनकर अपना ही अपकार करता चला जाता है।स्वयं को चल कपट व दंभ से दूर रखना चाहिए।कपट वह विष है जो,आलोचना के अमृत को गरल में रूपांतरित कर देता है।धर्म के पथ पर चलना है तो माया के बंधन ढीले करने पड़ेंगे।प्रवीण मुनि ने कहा विचार और रोग के बीच गहरा संबंध है।आदमी क्या खाता है,यह महत्व की बात नही है।महत्व की बात तो यह है कि वह किन भावनाओ,किन विचारों और कैसे मन के साथ खा रहा है।दूषित मन से खाया गया भोजन विषाक्त पैदा करता है।घृणा उतेजना वैमनस्य ईर्ष्या महत्वकांक्षा अर्थात अनेक कुविचार जहां मन को कुंठित बनाते है,वही शरीर को रक्तचाप हदय रोग आदि भयंकर रोग से कमजोर बना देता है।मुनि ने कहा तन की स्वच्छता निर्मल मन की निशानी है।रितेश मुनि ने कहा शांतिप्रद जीवन जीना है तो महावीर का मार्ग ही चुनना होगा।अहिंसा प्रेम और करुणा को जीवन का उद्देश्य बनाना होगा।जब तक प्रत्येक राष्ट्र का नागरिक अहिंसा को नही समझ लेता,शांति के लिए किए गए सभी प्रयास थोथे साबित होंगे।प्रभातमुनि ने कहा पहले अपने आप मे विश्वास जागृत करे।आपका सोच सदैव सकारात्मक रखना है।अच्छे कार्य के साथ जुटने की जरूरत है।मनुष्य मन में अच्छे भाव जगायेगा तो उसे हर और प्रशंसा ही मिलेगी।