पतंग -कुछ दोहे
जीवन है आकाश में, उड़ती हुई पतंग।
कितने ही ऊपर उठो, रखो डोर का संग॥
हर औरत की ज़िंदगी, जैसे एक पतंग।
खींचे या फिर ढील दे, डोर पिया के संग॥
रखना पड़ता है सदा, उसे डोर का साथ।
कट जाने पर क्या पता, लगना किसके हाथ॥
जैसे ही आकाश में, कटती दिखे पतंग।
सदा लूटता है उसे, कोई एक दबंग॥
कभी उड़ाकर देखिए, बारिश में इक बार।
देखेगी जब हौसला, मानेगी वह हार॥
हरी उड़ाता राम जब, भगवा को रहमान।
खो जाती आकाश में, रंगों की पहचान॥
बार बार वे हो रहे, देख देख कर दंग।
उनकी ही नीची रही, जब भी उडी पतंग॥
सही हाथ में डोर हो, उड़ती सही पतंग।
ग़लत हाथ में जब गई, करे अंग को भंग॥
उड़ने को आकाश है, मर्यादा है डोर।
डोर कटी तो लाज को, लुटा रही हर ओर॥
कुछ केवल हैं काटते, कुछ लेते हैं लूट।
जो गुण चाहो सीख लो, सबको है यह छूट॥
100, रामनगर एक्सटेंशन देवास 455001