लक्ष्मीपुरा के ग्रामीणों ने सड़क मार्ग बदलने पर जताया विरोध, कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन

रायला- पेसवानी लक्ष्मीपुरा क्षेत्र के ग्रामीणों ने डीएमएफटी (जिला खनिज प्रतिष्ठान ट्रस्ट) फंड से स्वीकृत सड़क मार्ग में फेरबदल को लेकर नाराजगी जताते हुए सोमवार को भीलवाड़ा जिला कलेक्टर और सांसद से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा। ग्रामीणों ने मांग की कि पूर्व स्वीकृत मार्ग के अनुसार ही सड़क का निर्माण कराया जाए, अन्यथा उन्हें आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, ईरास ग्राम पंचायत को डीएमएफटी फंड से ₹150.00 लाख की लागत से 3 किलोमीटर लंबी एवं 3.75 मीटर चैड़ी सड़क स्वीकृत हुई थी, जो ईरास स्थित भेरूनाथ मंदिर से रायला के श्रीराम होटल तक जानी थी। इस परियोजना का उद्घाटन 13 मई 2025 को क्षेत्रीय विधायक सिंह द्वारा किया गया था।
लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि उद्घाटन के बाद कुछ प्रभावशाली लोगों के दबाव में इस मार्ग को बदलकर ईरास पंचायत के रामपुरिया से रायला के श्रीराम होटल तक जोड़ा जा रहा है, जिससे लक्ष्मीपुरा के निवासियों को सीधा लाभ नहीं मिल पाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क मार्ग बदलने से उनकी लंबे समय से चली आ रही मांग पर पानी फिर जाएगा और क्षेत्र के विकास कार्य प्रभावित होंगे।
इस बदलाव के विरोध में लक्ष्मीपुरा के दर्जनों ग्रामीणों ने सोमवार को जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर विरोध दर्ज कराया और ज्ञापन सौंपा। ग्रामीणों ने सांसद दामोदर अग्रवाल से भी मुलाकात कर वास्तविक स्थिति से अवगत कराया और कहा कि वे चाहते हैं कि सर्वे के अनुसार पहले से स्वीकृत मार्ग पर ही कार्य किया जाए।
ज्ञापन देने पहुंचे ग्रामीणों में लक्ष्मी नारायण शर्मा, जगदीश चंद्र, दुर्गालाल गुर्जर, राधेश्याम आमेटा, देवीलाल गुर्जर, लाल गुर्जर, लादूराम, नानूराम हिंदू गुर्जर, रामनिवास गुर्जर, हेमराज गुर्जर, शंकरलाल प्रजापत, नारायण कुमार, दुर्गेश गुर्जर, नारायणलाल, मांगीलाल, ओमप्रकाश खटीक, और प्रभुलाल गुर्जर सहित अन्य लोग शामिल थे।
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की कि जिस मार्ग की स्वीकृति पूर्व में हुई थी, उसी पर निर्माण कार्य करवाया जाए और राजनीतिक प्रभाव के चलते सड़क के मार्ग में फेरबदल न किया जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे आंदोलन करने को बाध्य होंगे।
ग्रामीणों की इस सक्रियता से क्षेत्र में एक बार फिर विकास कार्यों में पारदर्शिता और जनसुनवाई की आवश्यकता की ओर ध्यान गया है। अब देखना होगा कि जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधि ग्रामीणों की इस मांग पर क्या निर्णय लेते हैं।