न झुका, न रुका शाहपुरा, 2025 में हर मोर्चे पर लड़ा शहर

Update: 2025-12-31 06:23 GMT

शाहपुरा (मूलचन्द पेसवानी)। वर्ष 2025 शाहपुरा के इतिहास में संघर्ष, जनभावना और संकल्प का प्रतीक बनकर उभरा। यह साल शाहपुरा की जनता के धैर्य, आक्रोश और उम्मीद तीनों का आईना रहा। जिला बहाली की मांग से लेकर सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजनों तक, हर मंच से यही संदेश निकला कि शाहपुरा अपने हक, पहचान और भविष्य के सवाल पर पीछे हटने वाला नहीं है।

साल की शुरुआत ठंड और कोहरे के बीच हुई, लेकिन सियासी माहौल पूरी तरह गरम रहा। “शाहपुरा जिला बचाओ आंदोलन” ने एक बार फिर जोर पकड़ा। वकील संगठन, व्यापारी वर्ग, सामाजिक संगठन और आम नागरिक एक स्वर में सरकार से जवाब मांगते नजर आए। यह आंदोलन अब महज प्रशासनिक मांग नहीं, बल्कि शाहपुरा की जन-अस्मिता का प्रतीक बन चुका था।

आगे बढ़ते समय के साथ आंदोलन और तेज हुआ। धरना-प्रदर्शन, रैलियां, काली पट्टी विरोध, ज्ञापन और गिरफ्तारियों ने शाहपुरा को आंदोलित रखा। जनता का गुस्सा इस बात पर था कि जिस जिले का सपना दिखाया गया, उसे बिना ठोस कारण छीन लिया गया। इसी बीच शाहपुरा विधायक डॉ. लालाराम बैरवा की भूमिका भी सामने आई। उन्होंने सरकार से सीधे संवाद कर और विधानसभा के पटल पर शाहपुरा की आवाज मजबूती से रखते हुए सड़क, पेयजल, शिक्षा, चिकित्सा सहित कई विकास योजनाओं को स्वीकृत कराया। हालांकि जनभावना यह भी रही कि घोषणाओं के साथ-साथ काम की रफ्तार जमीन पर और तेज दिखाई देवें।

इसी दौरान रामस्नेही संप्रदाय का भव्य फूलडोल महोत्सव शाहपुरा की पहचान बनकर उभरा। देशभर से पहुंचे हजारों श्रद्धालुओं, सत्संग, भजन, शोभायात्रा और धार्मिक अनुष्ठानों ने पूरे शहर को आस्था के रंग में रंग दिया। संघर्षों से जूझ रहे शाहपुरा को इस आयोजन ने सांस्कृतिक ऊर्जा दी और स्थानीय व्यापार व सेवाओं को भी संबल प्रदान किया।

साल के मध्य में सामाजिक गतिविधियां तेज रहीं। विभिन्न समाजों के सम्मेलन, प्रतिभा सम्मान समारोह और धार्मिक आयोजनों ने सामाजिक एकजुटता का संदेश दिया। वहीं कुछ दुखद दुर्घटनाओं और असामयिक मौतों ने पूरे क्षेत्र को शोक में डुबोते हुए प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर सवाल भी खड़े किए।

आगे चलकर कानून-व्यवस्था चिंता का विषय बनी। क्षेत्र में तस्करों द्वारा पुलिस पर फायरिंग जैसी गंभीर घटनाओं ने सुरक्षा व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया। वन क्षेत्रों में लकड़ी तस्करी और कथित मिलीभगत के आरोपों ने शासन-प्रशासन के लिए चेतावनी का काम किया।

साल के अंतिम हिस्से में विकास से जुड़ी मांगें फिर मुखर हुईं। एनएच-158 के अधूरे हिस्से, सड़क निर्माण और परिवहन सुविधाओं को लेकर जनआक्रोश चरम पर रहा। खून से लिखे ज्ञापन और उग्र विरोध ने जनता की हताशा और गुस्से को उजागर किया। त्योहारों और धार्मिक आयोजनों ने माहौल को कुछ हल्का जरूर किया, लेकिन हर मंच पर सवाल वही गूंजता रहा “शाहपुरा का कसूर क्या है?”

वर्ष के अंत तक भी जिला बहाली पर कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ, लेकिन सामाजिक एकता, धार्मिक आयोजनों और जनभागीदारी ने यह साबित कर दिया कि शाहपुरा टूटता नहीं, बल्कि संघर्ष में और मजबूत होता है।

कुल मिलाकर, 2025 शाहपुरा के लिए इंतजार, आंदोलन और इरादों का साल रहा। जनता ने साफ कर दिया कि वह अपने हक और पहचान की लड़ाई लंबी लड़ने को तैयार है। शाहपुरा को पूरी उम्मीद है कि आने वाला वर्ष शाहपुरा के लिए बेहतर होगा

नए फैसलों, नई शुरुआत और सकारात्मक बदलाव के साथ।

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