पहली बार जापान को मिलेगी महिला पीएम, साने ताकाइची के नाम पर लगी मुहर

Update: 2025-10-04 13:02 GMT

टोक्यो । जापान को पहली बार एक महिला प्रधानमंत्री मिलने जा रही है। दरअसल, जापान में प्रधानमंत्री के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है, जिसे लेकर शनिवार को मतदान हुआ। इस मतदान में जापान की पूर्व आर्थिक सुरक्षा मंत्री साने ताकाइची को देश की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) का नेता चुना गया। एलडीपी का नेता चुने जाने के बाद अब वह 15 अक्टूबर को शपथ ग्रहण करेंगी। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पार्टी नेतृत्व की दौड़ में पांचों उम्मीदवारों में से किसी को भी शुरुआती दौर के मतदान में बहुमत नहीं मिला। इसके बाद हुए दूसरे दौर के मतदान में ताकाइची को 185 वोट मिले, जबकि कोइज़ुमी को 156 वोट मिले। चुनाव के पहले दौर में, ताकाइची ने कुल 183 वोटों के साथ बढ़त हासिल की, जिनमें 64 पार्टी सांसदों और 119 आम सदस्यों का समर्थन मिला। द जापान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कोइज़ुमी को 164 वोट मिले, जिनमें 80 पार्टी सांसदों के और 84 आम सदस्यों ने उन्हें समर्थन दिया।

एलडीपी के सांसदों ने दिन में ही नए नेता के लिए मतदान शुरू कर दिया था, जिसमें पांच उम्मीदवार नए पार्टी प्रमुख और देश के अगले प्रधानमंत्री बनने की रेस में शामिल थे।

साने ताकाइची के अलावा, पूर्व एलडीपी महासचिव तोशिमित्सु मोटेगी, मुख्य कैबिनेट सचिव योशिमासा हयाशी, कृषि मंत्री शिंजिरो कोइज़ुमी और ताकायुकी कोबायाशी भी दावेदार थे। ये पांचों उम्मीदवार पिछले साल के चुनाव में भी शामिल थे, जिसमें रिकॉर्ड नौ उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी पेश की थी।

बता दें, पिछले महीने एलडीपी अध्यक्ष शिगेरु इशिबा के इस्तीफे के बाद शुरू हुए चुनाव के पहले दौर में कुल 590 वोट पड़े, जिनमें से 295 एलडीपी सांसदों के थे और 295 वोट आनुपातिक रूप से पार्टी के सामान्य सदस्यों और पंजीकृत समर्थकों को आवंटित किए गए थे।

विकास की धीमी रफ्तार, बढ़ती कीमतें और येन का तीव्र अवमूल्यन चुनावी मुद्दा रहा। इसके अलावा एलडीपी की दोहरी हार ने उसके नेतृत्व को कड़ी निगरानी के दायरे में ला दिया है।

जैसे-जैसे सत्तारूढ़ पार्टी अपना ऐतिहासिक प्रभुत्व खो रहा है, उसके लिए आगे का रास्ता उतना ही मुश्किल होता जा रहा है। एलडीपी को इस कठिन समय में लोगों को ये भरोसा दिलाना होगा कि एक विभाजित पार्टी को एकजुट रखना, अल्पमत शासन को संभालना, और संशयी मतदाताओं को यह विश्वास दिलाना कि एलडीपी अभी भी स्थिर सरकार बनाने में सक्षम है।

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