भजनलाल सरकार की गांव-ग्वाल योजना: परंपरा की वापसी या एक भावुक प्रयोग? पर एक बड़ा सवाल ये भी

Update: 2025-08-05 15:20 GMT



 

 

 भजनलाल सरकार की गांव-ग्वाल योजना: परंपरा की वापसी या एक भावुक प्रयोग? पर एक बड़ा सवाल ये भी 

 राजकुमार माली

भीलवाड़ा राजस्थान की भजनलाल सरकार  एक ऐसी योजना की शुरुआत करने जा रही   है, जो ना केवल **गांवों की भूली-बिसरी परंपराओं** को फिर से जीवंत करने  का प्रयास होगा   , बल्कि **छूट्टा पशुओं** से जूझते आमजन को भी राहत देने का दावा करती है। **“गांव-ग्वाल योजना”** के नाम से लाई जा रही यह पहल अब सरकारी दस्तावेजों से निकलकर धरातल पर उतरने की तैयारी में है। लेकिन क्या इस योजना को वह ज़मीन भी मिलेगी, जहां कभी गायें चरती थीं?

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 गांवों की वो सुबहें, जो अब सिर्फ यादें हैं... 




 

कभी **सुबह की पहली किरण** के साथ ही गांवों में **बछड़ों के रंभाने की आवाज**, ग्वालों की पुकार, और दूध की बाल्टियों की खनक गूंजा करती थी। महिलाएं सिर पर टोकरियाँ रखे, बच्चे गायों के साथ कदमताल करते चरागाह की ओर निकलते थे। **सांझ होते ही** वही पशु अपने-अपने घरों की राह पकड़ लेते थे – बिना किसी आदेश या निर्देश के।

वक़्त ने करवट ली, और ये परंपरा **धीरे-धीरे दम तोड़ती चली गई**। आज हालात यह हैं कि **गांव हो या शहर**, बछड़ों और गायों को जन्म के कुछ दिन बाद ही **सड़कों पर भटकने** के लिए छोड़ दिया जाता है। यह **मानवता और पशुपालन**, दोनों के पतन की तस्वीर है।

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### **गांव-ग्वाल योजना क्या है?**

पंचायतीराज विभाग द्वारा लाई जा रही इस योजना में –

* हर गांव में **ग्वाल की नियुक्ति** की जाएगी

* **ग्राम पंचायतें पारिश्रमिक देंगी**

* पशुपालक **पंजीकरण के माध्यम से** अपनी गायों को योजना में जोड़ सकेंगे

* ग्वाल दिनभर इन पशुओं को **चरागाह भूमि पर लेकर जाएगा**

इस योजना से उम्मीद है कि **छूट्टा पशुओं की बढ़ती संख्या पर अंकुश** लगेगा, पशुओं को खानपान व देखरेख मिलेगा, और गांवों में **संवेदनशील सामूहिक जिम्मेदारी** का भाव लौटेगा।

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 चरागाह है कहाँ? यही सबसे बड़ा सवाल 


 



योजना जितनी भावनात्मक है, **उतनी ही जमीनी हकीकतों से टकराती भी है**। भीलवाड़ा से लेकर बारां, सीकर से लेकर बीकानेर तक **चरागाह भूमि का अस्तित्व ही संदेह के घेरे में है**।

* कहीं **अवैध कब्जे**,

* कहीं **निर्माण**,

* तो कहीं **भूमियों की खुली खरीद-फरोख्त**।

गांव के जो **चारागाह थे, वे अब फार्महाउस हैं या टाइल फैक्ट्री।**




 ऐसे में ग्वाल तो मिल जाएगा, गायें भी होंगी, लेकिन **चराने के लिए ज़मीन कहाँ मिलेगी?** क्या फिर ये योजना **फाइलों और भ्रष्टाचार की भेंट** नहीं चढ़ जाएगी?

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### **भीलवाड़ा में मौतें दे चुकीं हैं चेतावनी**

छूट्टा पशु सिर्फ **समाज की उपेक्षा का प्रतीक** नहीं, बल्कि **खतरा** भी बनते जा रहे हैं।

* **भीलवाड़ा नगर परिषद के सभापति भग्क्ति लाल बेहड़िया  की मौत हो चुकी है ऐसे ही एक हादसे में।

* **जयपुर में अधिकारी** जान गंवा चुका है।

* सड़कें खतरनाक होती जा रही हैं, फसलें चर ली जाती हैं, **अर्थव्यवस्था और जनजीवन** दोनों चरमरा रहे हैं।

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### **सरकार ने भावनाओं को छुआ, अब ज़मीनी हकीकत से जूझना होगा**

भजनलाल सरकार का यह प्रयास **निश्चित रूप से सराहनीय** है। परंतु किसी योजना का **भावनात्मक होना** ही काफी नहीं – **उसका व्यावहारिक और ईमानदार होना भी जरूरी है**।

अगर सरकार सच में गायों, ग्वालों और गांवों की चिंता कर रही है, तो उसे सबसे पहले –

* **चरागाह भूमि को पुनः चिन्हित कर मुक्त कराना होगा**

* पंचायतों को जवाबदेह बनाना होगा

* ग्वालों के चयन और भुगतान में **पारदर्शिता** रखनी होगी

* और सबसे बड़ी बात – **इस योजना की निगरानी के लिए ग्रामस्तर पर जनसहभागिता सुनिश्चित करनी होगी**

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### **निष्कर्ष:**

गांव-ग्वाल योजना एक **संवेदनशील सोच और समाज के पुनरुत्थान का माध्यम** बन सकती है – बशर्ते इसे सिर्फ योजना न रहने दिया जाए। ये परंपरा, ये भाव, और ये दायित्व – **हर गांववाले का भी है।**

गायें फिर से अपने घर लौटें, ग्वाल फिर से सम्मान पाए और गांवों में फिर वो **साँझ की घंटियों की आवाज** गूंजे – यही इस योजना की सबसे बड़ी सफलता होगी।

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