भीलवाड़ा में नगर निगम की बलराम व्यायाम शाला बनी अवैध कबाड़ गोदाम और जुआघर!

Update: 2025-08-18 08:39 GMT

भीलवाड़ा (हलचल टीम) सरकार और नगर निगम अक्सर यह दावा करते हैं कि वे जनता के पैसे का सही उपयोग कर रहे हैं और खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए लाखों-करोड़ों खर्च किए जाते हैं। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। भीलवाड़ा के शास्त्री नगर क्षेत्र में बने बलराम व्यायामशाला का हाल देखकर कोई भी समझ सकता है कि कैसे सरकारी संपत्ति बर्बाद हो रही है और कैसे प्रशासन की उदासीनता ने इस जगह को कबाड़ गोदाम और जुआघर में बदल दिया है।

लाखों रुपए खर्च, लेकिन सपना टूटा

नगर निगम ने पहलवानों को प्रशिक्षण देने के लिए इस व्यायामशाला का निर्माण कराया था। उद्देश्य था कि यहां आसपास के युवा खेलों की ओर आकर्षित हों और अच्छे  खिलाड़ी तैयार किए जा सकें। इसके लिए लाखों रुपए की लागत से भवन और व्यवस्था खड़ी की गई। देखरेख की जिम्मेदारी सुंदर जाट और बालमुकुंद खटीक को सौंपी गई। जैसा की बोर्ड पर दर्शाया गया है।


लेकिन जो जगह युवा पहलवानों के पसीने से महकनी चाहिए थी, वहां अब कबाड़  गोदाम के ढेर लगे हैं और गंदगी फैलाई हुई। लोकार्पण का बोर्ड आज भी बाहर टंगा हुआ है, लेकिन उसके नीचे कबाड़ वस्तुओं का ढेर किसी उपहास से कम नहीं।



कबाड़खाने से जुआघर तक

सूत्रों और स्थानीय लोगों का कहना है कि इस व्यायामशाला में लंबे समय से अवैध गतिविधियां चल रही थीं। खेल के नाम पर बनी यह इमारत पहले कबाड़ गोदाम में तब्दील हुई और अब यहां जुआ का अड्डा भी संचालित होने लगा। पुलिस ने जब रविवार को छापा मारा तो अंदर से सुंदर जाट, बालमुकुंद खटीक सहित 12 लोग जुआ खेलते हुए गिरफ्तार हुए।


यह खुलासा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह भी दिखाता है कि जिम्मेदार विभाग आंख मूंदे बैठे थे।


पहलवानों को  वातावरण मिले ऐसा तो यहां लगता नहीं है यहां तो जुआ घर और  कबाड़ की खटपट ही नजर आती हे फिर कैसे युवाओं का ....?

जनता का गुस्सा


इलाके के लोगों का कहना है कि यह व्यायामशाला काफी समय से कबाड़ गोदाम के रूप में इस्तेमाल हो रही है। नगर निगम के कर्मचारी आए दिन इधर से गुजरते हैं, लेकिन किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया। “सरकार ने हमारे बच्चों के लिए यह व्यायामशाला बनाई थी। हमें उम्मीद थी कि यहां से पहलवान निकलेंगे। लेकिन प्रशासन की अनदेखी ने इसे जुआरियों और अवैध धंधेबाजों का ठिकाना बना दिया,” मोहल्ले के एक बुजुर्ग ने गुस्से में कहा।

सवालों के घेरे में नगर निगम

अब बड़ा सवाल यह है कि जब नगर निगम की जमीन पर यह व्यायामशाला बनी, और इसकी देखरेख की जिम्मेदारी निगम ने तय की, तो फिर इस हालात की जिम्मेदारी कौन लेगा?

क्या निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों को यह सब  अब तक दिखाई नहीं दिया?

क्या वाकई वे अंजान थे या फिर सब कुछ जानकर भी आंखें मूंदे रहे?

यह कहना गलत नहीं होगा कि निगम कर्मचारियों की यह चुप्पी उन्हें भी संदेह के घेरे में खड़ा करती है। क्योंकि अवैध गतिविधियां बिना प्रशासनिक संरक्षण के लंबे समय तक नहीं चल सकतीं।

पुलिस ने किया पर्दाफाश, लेकिन आगे क्या?

पुलिस की छापेमारी ने जरूर यहां की असलियत उजागर कर दी है। लेकिन अब सबसे अहम सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई सिर्फ एक दिन की सुर्खी बनकर रह जाएगी या फिर इस पूरे प्रकरण पर गंभीर कदम उठाए जाएंगे।

सरकारी उदासीनता की मिसाल

बलराम व्यायामशाला का यह मामला सरकारी उदासीनता की सबसे बड़ी मिसाल है। जनता के टैक्स का पैसा खेलकूद के विकास के नाम पर खर्च हुआ, लेकिन नतीजा यह निकला कि वह इमारत कबाड़ और जुए का अड्डा बन गई।

सरकार के पास योजनाएं तो बहुत हैं, लेकिन उन योजनाओं की निगरानी और रखरखाव पर कोई ध्यान नहीं। नतीजा यह कि लाखों का निवेश सिर्फ कागजों पर उपलब्धियों के रूप में दिखाया जाता है, जबकि जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट होती है।

राजनीतिक संरक्षण का शक

लोगों में यह भी चर्चा है कि ऐसे मामलों में अक्सर राजनीतिक संरक्षण होता है। सवाल उठता है कि आखिर क्यों नगर निगम के कर्मचारी चुप रहे? क्या उन्हें ऊपर से दबाव था? क्या संचालकों के साथ किसी तरह का गठजोड़ है?

यदि ऐसा है, तो यह और भी खतरनाक है, क्योंकि इसका मतलब है कि सरकारी संपत्तियां धीरे-धीरे दबंगों और अवैध कारोबारियों के कब्जे में जाती रहेंगी और प्रशासन सिर्फ मूकदर्शक बना रहेगा।


इनका कहना है

व्यायाम शाला की देखरेख के लिए जिम्मेदार कर्मचारी के खिलाफ जांच करवाई जा रही है , किसी ने लापरवाही बरती है और कोई इसमें दोषी पाया जाता है तो उसे के खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी

राकेश पाठक

महापौर

नगर निगम भीलवाड़ा

 

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