मांडल में रंग तेरस को खेला जाएगा नाहर नृत्य, दूर-दूर से लोग आते हे देखने
भीलवाड़ा.विजय गढ़वाल जिले के मांडल कस्बे में 412वे नाहर (शेर) नृत्य की तेयारिया शुरू हो गई हे अनवरत चले आ रहे इस नृत्य को मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए 412 साल पहले शुरू किया गया था. नृत्य की खासियत यह है कि यह साल में केवल एक बार राम और राज के सामने ही प्रस्तुत होता है. यह नृत्यरंग तेरस आयोजित होगा, जिसे देखने के लिए मांडल कस्बे में प्रदेश के हर हिस्से से लोग आते हैं. यह एक तरह का अनूठा नृत्य है, जहां पारम्परिक वाद्य यत्रों के धुनों के बीच कलाकार अपने शरीर पर कई किलो रुई लपेट कर शेर का स्वांग रचता है, इसके बाद नृत्य करता है.
मांडल का प्रसिद्ध नाहर नृत्य
बुजुर्ग बताते हे की दरअसल, वर्ष 1614 में मांडल गांव में मेवाड़ महाराणा अमर सिंह से संधि करने मुगल बादशाह शाहजहां उदयपुर जा रहे थे. इस दौरान शाहजहां ने मांडल में पड़ाव डाला. इस दौरान उनके मनोरंजन के लिए यह नृत्य शुरू किया गया था, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी किया जाता रहा है.
बताते हैं कि नाहर नृत्य समारोह नरसिंह अवतार से संबंधित है. 1614 ईस्वी में बादशाह शाहजहां जब यहां से निकल रहे थे, तब उनके मनोरंजन के लिए नरसिंह अवतार के रूप में यह नाहर नृत्य किया गया था. उस दिन के बाद से आज तक कस्बे की बहन-बेटियां, दामाद सब गांव में आ जाते हैं. यह भाईचारे की बड़ी मिसाल है. सुबह रंग खेलते हैं और शाम को बेगम-बादशाह की सवारी निकाली जाती है. शाम को शरीर पर रूई लपेटकर कलाकारों की ओर से नाहर यानी सिंह का स्वांग रचकर नृत्य किया जाता है. रंग तेरस पर लोग खुद भी होली खेलते हैं और अपने इष्ट राधा-कृष्ण को भी खेलाते हैं. इस दौरान भजन भी गाते हैं.
नाहर नृत्य करने वाले कलाकार भैरू लाल माली का कहना है कि नाहर बनने के लिए रूई और धागा उपयोग किया जाता है। जिसे शरीर से लपेट कर नाहर का रूप धारण किया जाता है। यह नृत्य पूरे देश में केवल मांडल में ही किया जाता है। इस दिन सुबह विभिन्न पकवान बनाए जाते है और लोग एक -दूसरे के घर जाकर इनका आनंद उठाते है। और रात में इस नृत्य का आयोजन होता है।