देश में कपास संकट ने बढ़ाया कपड़ा उद्योग पर दबाव, घटती उत्पादकता के समाधान के प्रयास

देश में कपास उत्पादन में तेज गिरावट आई है। इससे किसानों की आय पर असर पड़ा है। निर्यात कम हो गया है और वस्त्र उद्योग पर दबाव बढ़ रहा है।
केंद्र सरकार शुक्रवार को कोयंबटूर में किसानों एवं कृषि विज्ञानियों के साथ बड़े स्तर पर विमर्श करने जा रही है। इसमें उत्पादकता बढ़ाने पर गंभीर चिंतन होगा, क्योंकि रकबे में पहले नंबर पर होने के बाद भी उत्पादकता में भारत का स्थान दुनिया में 36वां है। सरकार एचटीबीटी (हर्बीसाइड टॉलरेंट बीटी) कपास को वैध करने पर भी विचार कर सकती है, ताकि वर्तमान रकबे में ही पैदावार बढ़ सके। यह जैव-प्रौद्योगिकी आधारित किस्म है, जिसे कीट और खरपतवार दोनों से बचाने के लिए विकसित किया गया है।
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उन्नत बीजों की कमी से किसानों की कमर टूट रही
भारत के किसानों ने 2002 में बीटी कॉटन को अपनाया था। तब से अबतक लगभग 97 प्रतिशत किसान इसी उन्नत बीज का प्रयोग करते आ रहे हैं, मगर इसमें नई जैविक एवं पर्यावरणीय चुनौतियां आ जाने के बाद अब सरकार इसके विकल्प की तलाश में है, ताकि पैदावार बढ़े, लागत घटे एवं किसानों को नई ऊर्जा मिल सके।
उन्नत बीजों की कमी से किसानों की कमर टूट रही है। यही कारण है कि कपड़ा मंत्रालय की सलाह पर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस दिशा में पहल तेज कर दी है।
सरकार का लक्ष्य उत्पादन बढ़ाकर लागत घटाना
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को तमिलनाडु के कोयंबटूर में “विकसित कृषि संकल्प अभियान'' के तहत कपास संकट पर शीर्ष बैठक बुलाई, जिसमें कपास किसानों, वैज्ञानिकों, राज्य सरकारों और उद्योगों के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेंगे। किसानों से सुझाव आमंत्रित करने के लिए कृषि मंत्रालय ने एक टोल-फ्री नंबर भी जारी किया है, जो 18001801551 है।