भीलवाड़ा हलचल।अब यह मूषक (माउस) केवल आटे-दाल की बोरियों में नहीं घुसता। अब यह हमारे बैंक खातों, गोपनीय फाइलों और निजी डेटा में भी सेंध मार रहा है। एक क्लिक में खाता खाली, दूसरे में जीवन भर की गोपनीयता सार्वजनिक!
भारतीय संस्कृति में चूहा केवल कुतरने वाला जीव नहीं, गणपति का वाहन माना गया है। वह घर, मंदिर, गोदाम, दुकान और दफ्तर – हर जगह विराजमान है। लेकिन अब सवाल यह नहीं है कि चूहा कहां है, सवाल यह है कि आज आदमी कहां-कहां ‘चूहा’ बन गया है।
तकनीक का स्वामी या गुलाम?
माउस की पूंछ पकड़कर इंसान सोचता है कि वह तकनीक का स्वामी है, जबकि हकीकत यह है कि यह छोटा सा माउस ही हमें चला रहा है।
संस्कृत में इसे ‘मूषक’ कहते हैं और हरियाणवी में ‘मूसा’। यह मूसा अब केवल रोटी नहीं चुराता, भरोसा, गोपनीयता और अस्तित्व भी चुरा लेता है
राजनीति में भी चूहों की दहाड़
कहते हैं कि जहाज डूबने से पहले सबसे पहले चूहे कूदते हैं, और सत्ता डगमगाए तो नेता।
राजनीति में कुछ नए ‘स्टार्टअप’ चूहे पूंछ उठाना सीख रहे हैं। कुछ बिल खोदते हैं, कुछ गठजोड़ रचते हैं।
आज समाज में ऐसे भी लोग हैं जो दूसरों के बिल खोदने में लगे हैं, और ऐसे भी जो डर के मारे चूहे की तरह जी रहे हैं।
शेर की दहाड़ रखने वाले भी समय की मार से चूहे बन जाते हैं।
आदमी नहीं... चूहा!
अब वह दिन दूर नहीं जब समाज कहेगा —
“ये आदमी नहीं, चूहा है... और वो भी अपना नहीं, दूसरों के बिल खोदने वाला।”
सीढ़ियां चढ़ते हुए भी आदमी अपने अंदर के सुराख नहीं भर पा रहा है।
मूषक अब प्रतीक बन चुका है — तकनीकी अराजकता, डिजिटल चोरी और सामाजिक गिरावट का।
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