भीलवाड़ा का गौरी परिवार द्वारा अजमेर दरगाह में पारंपरिक झंडा रस्म के साथ 814वें उर्स की अनौपचारिक शुरुआत
अजमेर। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती उर्फ गरीब नवाज की दरगाह के बुलंद दरवाजे पर पारंपरिक झंडा रस्म अदा की गई। इस अवसर पर अकीदतमंदों की बड़ी संख्या में मौजूदगी रही। भीलवाड़ा का गौरी परिवार बीते 82 वर्षों से लगातार यह रस्म निभाता आ रहा है।
असर की नमाज के बाद झंडे का जुलूस लंगरखाने से रवाना हुआ। ढोल नगाड़ों और सूफियाना कलाम के बीच जुलूस लंगरखाना गली, निजाम गेट और शाहजहानी गेट होते हुए बुलंद दरवाजे तक पहुंचा। झंडा चढ़ते ही दरगाह में उर्स की अनौपचारिक शुरुआत हो गई। रजब महीने का चांद दिखने पर उर्स औपचारिक रूप से आरंभ होगा। इस दौरान 25 तोपों की सलामी दी गई।
झंडा रस्म के दौरान दरगाह परिसर और आसपास के इलाकों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए। अतिरिक्त पुलिस बल तैनात रहा। सीसीटीवी कैमरों से निगरानी की गई और ड्रोन के जरिए भीड़ पर नजर रखी गई। बैरिकेडिंग के माध्यम से श्रद्धालुओं की आवाजाही को नियंत्रित रखा गया।
परंपरा के अनुसार झंडा चढ़ाने की रस्म भीलवाड़ा के गौरी परिवार ने अदा की। बुलंद दरवाजे पर फातिहा पढ़ी गई और अकीदतमंदों ने ख्वाजा साहब से अमन चैन और मुरादें मांगीं। पूरे आयोजन के दौरान या गरीब नवाज और ख्वाजा के दर पर जैसे नारों से माहौल गूंजता रहा।
गौरी परिवार द्वारा झंडा चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत वर्ष 1928 में पेशावर के हजरत सैयद अब्दुल सत्तार बादशाह जान रहमतुल्लाह अलैह ने की थी। वर्ष 1944 से यह जिम्मेदारी भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी के परिवार को मिली। लाल मोहम्मद गौरी ने 1991 तक यह रस्म निभाई। इसके बाद मोइनुद्दीन गौरी ने वर्ष 2006 तक और वर्तमान में फखरुद्दीन गौरी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
