रूप चतुर्दशी पर रविवार को सैकड़ो श्रावक श्राविका सजोड़ा करेंगे श्री घंटाकर्ण महावीर अनुष्ठान
भीलवाड़ा, BHN. श्रमण संघीय जैन दिवाकरीय मालव सिंहनी पूज्या श्री कमलावतीजी म.सा. की सुशिष्या अनुष्ठान आराधिका ज्योतिष चन्द्रिका महासाध्वी डॉ. कुमुदलताजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में आध्यात्मिक चातुर्मास आयोजन समिति द्वारा श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक समिति सुभाषनगर के तत्वावधान में तथा राष्ट्रीय महामंगलकारी अनुष्ठान समिति के प्रायोजन में रूप चतुर्दशी के पावन अवसर पर रविवार को सजोड़ा श्री घंटाकर्ण महावीर अनुष्ठान का आयोजन होगा। इसे लेकर पंजीयन कराने वाले सैकड़ो श्रावक श्राविकाओं में उत्साह का वातावरण है। आरसी व्यास कॉलोनी में गेट न.33 के पास स्कूल के नजदीक ग्राउण्ड में होने वाला ये अनुष्ठान सुबह 8.15 बजे से प्रारंभ हो जाएगा। पंजीयन कराने वालों को सुबह 7.45 बजे तक कार्यक्रम स्थल पर पहुंचना होगा। इस भव्य आयोजन को लेकर कार्यक्रम स्थल पर तैयारियां पूरी कर ली गई है। पंजीयन कूपन के बिना अनुष्ठान पांडाल में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी। अनुष्ठान की पूर्व संध्या पर शनिवार को प्रवचन के दौरान महासाध्वी कुमुदलताजी म.सा. ने श्री घंटाकर्ण महावीर स्रोत अनुष्ठान का महत्व बताते हुए कहा कि श्री घंटाकर्ण महावीर तीर्थंकर नहीं होकर जिनशासन के रक्षक देव है। उनकी आराधना पुण्यदायी होने के साथ जीवन से हर प्रकार का भय व संकट दूर करने वाली है। उन्होंने श्री घंटाकर्ण महावीर देव के पूर्व भव ओर जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि जिनशासन रक्षक बनने का भाव होने से राजा महाबल घंटाकर्ण नाम का देव बन गया। घंटाकर्ण महावीर स्रोत की रचना आचार्य बुद्धिसागर ने की ओर उन्होंने देव के कहने पर मूर्ति की रचना की ओर चतुर्दशी पर मंदिर में घंटाकर्ण की स्थापना हुई। रूप चतुर्दशी पर इस स्रोत की आराधना सर्व कष्ट व संकट निवारण करने वाली एवं महामंगलकारी होती है। श्री घंटाकर्ण महावीर जिनशासन के 52वीरों में से तीसरे वीर है। कुमुदलताजी म.सा. ने कहा कि दीपावली के त्यौहार पर पांच पर्व धन तेरस, दीपावली, गौतम प्रतिप्रदा, भाईदूज व ज्ञानपंचमी का विशेष महत्व है। हमे इस अवसर पर धूप दीपक नहीं बल्कि आत्मा का दीपक जलाना है। मंत्रों की शक्ति पहचान उनकी आराधना करने से जीवन बदल सकता है। श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मंत्रों की आराधना कर्मो का भार हल्का कर सकती है। तीर्थंकरों की स्तुति करने से भी तीर्थंकर गौत्र का बंध हो सकता है। उन्होंने भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक के उपलक्ष्य में त्याग तपस्या करने की प्रेरणा देते हुए बताया कि तेला तप की आराधना रविवार से ओर बेला तप की आराधना सोमवार से शुरू होगी। दीपावली महोत्सव 21 अक्टूबर को मनाया जाएगा। धर्मसभा में भगवान महावीर गाथा के तहत उत्तराध्ययन सूत्र के विभिन्न अध्यायों की व्याख्या करते हुए स्वर साम्राज्ञी डॉ. महाप्रज्ञाजी म.सा. ने कहा कि जीवन में संगति व सत्संग का बहुत महत्व होता है। हमारी संगत अच्छी होने पर सबकुछ अच्छा होगा लेकिन संगत खराब होने पर हमारी छवि भी खराब हो जाएगी। जो संतों की संगत में बैठते है उनकी छवि भक्त व उपासक की होती है। नजर मिलते ही नजारे बदल जाते है। वीर प्रभु महावीर की संगत ने चण्डकौशिक सर्प को भी सुधार भद्रकौशिक बना दिया ओर तिर्यंच भी आठवें देवलोक का अधिकारी बन गया। उन्होंने कहा कि हम मनुष्य भव पाकर भी अपने जीवन में बदलाव नहीं कर पा रहे है। प्रतिदिन कम से कम 24 मिनट परमात्मा की भक्ति अवसर करे। सत्संग वहीं होती है जो जीवन के पाप,ताप ओर संताप मिटा देती है। ऐसी सत्संग का अवसर कभी नहीं छोड़ना चाहिए। धर्मसभा में विद्याभिलाषी राजकीर्तिजी म.सा. ने भगवान महावीर स्वामी की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र के मूल पाठ का वाचन किया। वास्तुशिल्पी साध्वी पद्मकीर्तिजी म.सा. एवं साध्वी मण्डल ने दिवाकर चालीसा का पाठ भी कराया। अतिथियों का स्वागत आध्यात्मिक चातुर्मास आयोजन समिति एवं सुभाषनगर श्रीसंघ द्वारा किया गया। संचालन चातुर्मास समिति के सचिव राजेन्द्र सुराना ने किया।