भीलवाड़ा प्रोपर्टी कारोबार में 25 फीसदी तक मंदी, न खरीद न बिकवाल, भूखण्डों पर भरोसा भी नहीं

Update: 2025-08-04 23:05 GMT
भीलवाड़ा प्रोपर्टी कारोबार में 25 फीसदी तक मंदी, न खरीद न बिकवाल, भूखण्डों पर भरोसा भी नहीं
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भीलवाड़ा (राजकुमार माली) । कपड़ा कारोबार के बाद अब भीलवाड़ा का प्रोपट्री व्यवसाय भी मंदी की मार झेल रहा है। जरूरत के अलावा अब खरीद फरोख्त के प्रति लोगों का रूझान जमीन से हटकर सोना चांदी और शेयर बाजार की ओर है। ऐसे में प्रोपट्री कारोबार में 30 फीसदी तक मंदी की गति आ रही है।

भीलवाड का कपड़ा बाजार मंदी की मार से गुजर रहा है। शहर में कपड़ा ही लेन देन की धुरी है लेकिन लम्बे समय से बाजार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से जमीनी सौदे नहीं हो पा रहे है ।

प्रोपर्टी व्यवसायी संजय वैष्णव ने हलचल को बताया कि भीलवाड़ा में प्रोपर्टी का कारोबार काफी मंदा हो चला है। 20 से 25 फीसदी तक जमीनों की कीमतें गिरी है। जिससे प्रोपर्टी कारोबारियों की हालत भी पतली होती नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि खरीद फरोख्त भी न के बराबर है, जरूरतमंद ही जमीनों की खरीद फरोख्त कर रहे है और कोई अगर प्रोपर्टी बेचना चाहता है तो उसे नुकसान में ही सौदा करना पड़ रहा है।

प्रॉपर्टी में रु नहीं, सोने ,चांदी ओर शेयर मार्केट की ओर दौड़


यह बात भी सामने आई है कि भीलवाड़ा में अब जमीनों की खरीद फरोख्त के प्रति लोगों का रूझान कम हुआ है। लोग राकेट की तरह बढ रहे सोने चांदी में निवेश में रूचि दिखा रहे है। लोगों का मानना है कि जमीन में जितना लाभ नही होगा उससे कई गुणा अब सोने चांदी की खरीद में उन्हे लाभ दिख रहा है। यही नहीं कई लोग शेयर बाजार में भी अपना भाग्य आजमा रहे है। ऐसे में जमीनों की कीमतों में लगातार कमी आ रही है।

उठता विश्वास , मंडी 25 फीसदी तक

एक अन्य प्रोपर्टी व्यवसायी जे.जे.जायसवाल का कहना था कि प्रोपर्टी में मंदी जरूर आई है और खासकर बाहरी क्षेत्र में। उन्होंने माना है कि प्रोपर्टी कारोबार में 15 से 20 फीसदी तक मंदी आई है। बाकी तो जरूरत के मुताबिक खरीद फरोख्त हो रही है। एक अन्य प्रोपटी कारोबारी राजकुमार टेलर का कहना था कि आज सरकारी भूखण्डों की खरीद फरोख्त भी भरोसेमंद नहीं रह गई है। फर्जी पट्टे और मुआवजे में मिले भूखण्डों के निरस्तीकरण के चलते कई खरीददार उलझे हुए है। ऐसे में अब लोगों का रूझान भूखण्डों के खरीद के प्रति ज्यादा नहीं रह गया है।

इस पर भी नजर

कृषि भूमि की कॉलोनियों में तो हालत और भी ज्यादा खराब है। ऐसी कॉलोनियों में सुविधाएं कम होती है जिससे लोग खरीद तो लेते है लेकिन उन्हें कई परेशानियों से गुजरना पड़ता है 

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