भीलवाड़ा |काव्य गोष्ठी मंच के तत्ववाधान में उदयपुर से प्रकाशित नवरंग त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका " "नवरंग " के द्वितीय अंक का विमोचन गोपाल कृष्ण वाटिका में किया गया जिसमें मुख्य अतिथि प्रधान संपादक पुरुषोत्तम शाख द्वीपीय विशिष्ट अतिथि प्रकाश तातेड़ डॉ विमल शर्मा महेश बागरवाल बंशीलाल लौहार डॉ मनोहर माली प्रमोद सनाढ्य शेख अब्दुल हमीद थे,अध्यक्षता भारी साहित्यकार अफ़ज़ल खान अफ़ज़ल ने की, काव्य गोष्ठी का प्रारंभ कृष्णकांत सांचीहर द्वारा सरस्वती वंदना मां शारदे ज्ञान का वरदान दे व अंधकार है प्रभा जरा सी शेष रखो तुम सुना संमा बांध दिया,, धीरेन्द्र शिल्पी ने,,मां ने रख दिये थे गिरवी जैवर मेरी पढ़ाई के वास्ते ,, राम गोपाल आचार्य ने,,, वन उपवन कैसे महक सकता है माली के बिना,, मुकेश शर्मा ने हास्य कविता भाई साहव मूं वैतों तो अंग्रेजा ने झकड़ लैतो ने पकड़ लेतो,,, ज्योत्सना पोखरना ने,,
समर शेष है नारी जागों वक्त नहीं है सोने का,,,
राहुल दीक्षित ने,, महाभारत कभी खत्म हुई नहीं इसलिये कृष्ण यहीं है,, नरेन्द्र सिंह रावल ने ,, हमे आड़ावल का पत्थर पत्थर प्यारा है,, राजकुमार शर्मा ने,, श्राप सा लगता है रिश्तों को तोड़कर अलग रहना साथ रहने के लिये तुम खत्म विवाद क्यों नहीं करते,,, दीपक राजसमन्दि ने,, अपनो के लिबास में गैरों को देखा है,, शेख हनीफ़ रिज़्वी ने,, पहले ना अहलों को आगे लाया गया,,, चन्द्र शेखर नारलाई ने,, नैतिकता का पाठ पढ़ाने से पहले,,, गोपाल शर्मा ने,, जग में पैसे ने दिया पद प्रतिष्ठा मान पर देना मुर्दे में प्राण,, यशवंत शर्मा ने,, वक्त की रफ्तार यूं बदल रही है,, शेख अब्दुल हमीद ने,, घुटन है आबों हवा में दिमाग़ जलते है,, डॉ मनोहर श्रीमाली ने,, हास्य कविता,, काले मारे न वनै एक वात वी,, वात असी की लड़ता लड़ता आखी रात गी,, डॉ विमल शर्मा ने,, जब मां की ममता का स्पर्श पाऊं,,
पुरुषोत्तम शाखद्वीपी ने,, तुम्हारी याद में जानन हम तो गुमसुन रहते है, प्रमोद सनाढ्य ने,, वो मेरी राहों में बिछा आया मैं उसके हाथ फूल धमा आया,, प्रकाश तातेड़ ने नवरंग पत्रिका की संकलन से लेकर प्रकाशन जानकारी दी,,, व कविता मम्मी की गोदी में लल्ला मचा रहा है हल्ला गुल्ला बाल कविता सुनाई बंशीलाल लौहार ने,, जमाने की बाते जमाना ही जाने,,, दिनेश पंचोरी मधुमय अमृत गंगा जल तू मेरे पथ में छिड़काती चल,, अफ़जल खां अफ़जल ने,,, कोई छप उतरा दिल की नैया पर ये तो बस उसका हिलौरा है,, क्या कहते हो डाक्टर साहब दिल का दौरा है,, संचालन करते हुए
सूर्य प्रकाश दीक्षित ने अपनी ग़ज़ल अपनी उदासियों को बहुत सरझाना पड़ा मुझे कही कही तो बे वजह भी मुस्कराना पड़ा मुझे उम्र भर खुद्दारियां बे - मौत मर गई अपने अपने बेटों के सामने जब हाथ फैलाना पड़ा मुझे,,,सुना वाह वाही लूटी,, पवन पोखरना , योगेश उपाध्याय, गौतम शर्मा आदि उपस्थित है अंत में आभार मंच के राम गोपाल आचार्य ने व्यक्त किया ।