श्मशान भी बेहाल:टूटी छत के नीचे हुआ अंतिम संस्कार,ग्रामीणों में आक्रोश

Update: 2025-07-27 11:49 GMT

मंगरोप।मंगरोप के श्मशान घाट की बदहाल स्थिति ने एक बार फिर प्रशासन की अनदेखी और संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है। रविवार को बारिश के बीच एक शव का अंतिम संस्कार उस छत के नीचे करना पड़ा, जो वर्षों से जर्जर होकर टूट चुकी है।पानी टपकता रहा,गंदगी फैली रही और ग्रामीण विवश होकर अपमानजनक हालात में अपनों को अंतिम विदाई देने को मजबूर हुए।श्मशान घाट की हालत पिछले 24 वर्षों से उपेक्षित है।यहां तक पहुँचने वाला रास्ता भी बेहद जर्जर है।बरसात के मौसम में कीचड़ और फिसलन से लोगों को कंधों पर शव लेकर जाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।बावजूद इसके,आज तक प्रशासन या पंचायत की ओर से कोई स्थायी समाधान नहीं किया गया।टूटी टिन शेड,रिसता पानी और बदबू संस्कार में बाधा नहीं,मजबूरी बन गई है।ग्रामीणों का कहना है कि वे वर्षों से श्मशान घाट की मरम्मत की मांग कर रहे हैं, लेकिन पंचायत प्रशासन ने इस पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। टूटी छतें,सीलन भरी दीवारें,और जगह-जगह पसरी गंदगी आज इस पवित्र स्थल की पहचान बन चुकी हैं।

कस्बे में एकमात्र हिन्दू श्मशान घाट बनास नदी के किनारे स्थित है।कस्बे की आबादी लगभग 7000 से ऊपर है लेकिन यहां श्मशान घाट की व्यवस्थाएं माकूल नहीं है।सीनियर स्कूल से लगाकर श्मशान घाट तक रास्ता खस्ताहाल है।बड़ी मुश्किल से लोग शव को लेकर वहां पहुंचते है।सालों से लोग नदी पेटे में दाह संस्कार करते आए है। खुले आसमान के नीचे अंतिम संस्कार करना जैसे लोगों की मजबूरी बन गई है।बरसात के मौसम में बादलों से टपकती पानी की बौछार के बीच अंतिम संस्कार का ऐसा ही मामला रविवार को कस्बे में सामने आया है।शनिवार देर रात कस्बे के खटीक मोहल्ले में रहने वाले 85 वर्षीय नानूराम खटीक की मौत हो गई।ऐसी मान्यता है कि हिन्दू धर्म में रात्रि में शव का अंतिम संस्कार नहीं होता है।सुबह तीन बजे बरसात शुरू हो गई दिवंगत का अंतिम संस्कार रविवार सुबह 8 बजे होना था।लेकिन बरसात के कारण 2 घण्टे तक शव को रोक गया फिर भी बरसात बंद नहीं हुई।बरसात में शवयात्रा निकाली गई।श्मशान का पूरा रास्ता क्षतिग्रस्त होने के साथ ही उसपर पानी भरा था जिसमें दो से तीन जगह लोग असंतुलित हो गए थे।गनीमत रही कि शवयात्रा बाधित नहीं हुई।अब अंतिम यात्रा भी सम्मानजनक नहीं रही एक ग्रामीण ने गुस्से और पीड़ा के साथ यह बात कही।ग्रामीणों का कहना है कि जब जीवित व्यक्ति के अधिकारों की बात होती है तो शासन सजग होता है, लेकिन मृत्यु के बाद सम्मानजनक विदाई का हक भी जैसे व्यवस्था ने छीन लिया हो।पंचायत प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में है और तस्वीरें खुद ज़मीनी सच्चाई बयान कर रही हैं।अबतक सरपंचों का यही रोना रहा है कि हमारे पास श्मशान के लिए जगह पर्याप्त नहीं है जबकि मंगरोप निवासी कालू लाल पिता कल्याणमल जीनगर ने अपनी माताजी केसर देवी के नाम पर दर्ज आराजी नंबर 2290 जरिए 1 बीघा 5 बिस्वा जमीन 15 मार्च 2021 को पंचायत के नाम रजिस्ट्री करवाके मंगरोप श्मशान के लिए अपनी माता जी के नाम से दान की है।दान में मिली जमीन को करीब 4 साल हो गए है लेकिन पंचायत प्रशासन ने उक्त जमीन पर अबतक कोई भी निर्माण कार्य नहीं करवाया है।श्मशान घाट की स्थिति को लेकर ग्रामीणों में अब भारी रोष है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र मरम्मत कार्य शुरू नहीं हुआ तो वे आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेंगे।

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