मां की मौत पर बेटों ने शव लेने से किया इनकार, बूढ़े पिता अकेले निभा रहे अंतिम जिम्मेदारी,बागवान फिल्म की स्थिति दोहराई
गोरखपुर में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने इंसानी रिश्तों की मजबूती पर सवाल खड़े कर दिए। कैंपियरगंज क्षेत्र के भरोहियां ग्राम पंचायत में रहने वाली शोभा देवी की मौत के बाद उनके ही बेटों ने मां का शव लेने से मना कर दिया। वजह यह बताई गई कि घर में शादी चल रही है और अभी अंतिम संस्कार नहीं हो सकता। छोटे बेटे ने तो यहां तक कह दिया कि शव को फ्रीजर में रखवा दें, शादी के बाद अंतिम संस्कार कर देंगे।
बूढ़े पिता भुआल गुप्ता इस बात से टूट गए। पत्नी की अंतिम इच्छा और सम्मान के लिए उन्होंने स्थिति को हाथ में लिया और शव को गांव पहुंचाने का फैसला किया।
वृद्धाश्रम में गुजरा आखिरी समय
भुआल गुप्ता और उनकी पत्नी शोभा देवी तीन बेटों और तीन बेटियों के माता-पिता हैं। किराना व्यापार से जीवन बिताने वाला यह परिवार कभी साथ रहता था, लेकिन एक साल पहले बड़े बेटे ने माता-पिता को घर से निकाल दिया। बेघर होने पर दंपती पहले अयोध्या और फिर मथुरा पहुंचे, लेकिन ठिकाना न मिलने पर जौनपुर के एक वृद्धाश्रम में शरण लेनी पड़ी।
कुछ महीने पहले शोभा देवी के पैर में लकवा मार गया, इलाज से वह धीरे-धीरे ठीक भी हो रही थीं। लेकिन 19 नवंबर को तबीयत अचानक बिगड़ी और अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। डॉक्टरों के अनुसार शोभा देवी की किडनियां फेल हो चुकी थीं।
बेटों ने दिखाया बेरुखापन
मां के निधन की खबर जब छोटे बेटे को दी गई तो उसने कहा कि अभी घर में शादी है और अंतिम संस्कार बाद में होगा। शव को फ्रीजर में रखवा देने की सलाह सुनकर वृद्धाश्रम के कर्मचारी और भुआल गुप्ता दोनों हैरान रह गए। बेटियों ने कहा कि मां का शव गांव ले आया जाए, वहीं अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा।
गांव पहुंचने पर बड़ा बेटा शव को घर में लाने को तैयार नहीं हुआ। रिश्तेदारों और गांव वालों ने मिलकर घाट के पास शोभा देवी के शव को मिट्टी में दफन कर दिया, ताकि शव खराब न हो।
बूढ़े पति का दर्द
शोभा देवी के पति भुआल गुप्ता यह सब देखकर टूट गए। उनका कहना था कि बेटों ने कहा है कि चार दिन बाद शव निकालकर अंतिम संस्कार कर देंगे, लेकिन चार दिन में तो शरीर सड़ जाएगा। उन्हें समझाया गया कि मां की जगह आटे का पुतला बनाकर विधि-विधान से दाह संस्कार किया जा सकता है, जिसके बाद उन्होंने यही निर्णय लिया।
इस पूरी घटना ने गांव में भी चर्चा छेड़ दी है कि कैसे काबिल और संपन्न हुए बेटे अपने बुजुर्ग माता-पिता की जिम्मेदारियों से दूर होते जा रहे हैं।
