PM मोदी के हस्तक्षेप से हल हो सकता है कच्चातिवु विवाद', स्टालिन ने किया अनुरोध; भाजपा ने कसा तंज

By :  vijay
Update: 2025-07-17 05:22 GMT
PM मोदी के हस्तक्षेप से हल हो सकता है कच्चातिवु विवाद, स्टालिन ने किया अनुरोध; भाजपा ने कसा तंज
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नई दिल्ली | कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। इसकी वजह है कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन की पीएम मोदी से की गई एक अपील और उस पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का पलटवार। समुद्र तटीय राज्य के सीएम ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की है कि वे लंबे समय से चले आ रहे कच्चातीवु द्वीप विवाद को हल करने के लिए सीधा हस्तक्षेप करें। उनके ऐसा करने से ये विवाद हल हो सकता है। इसके अलावा स्टालिन ने श्रीलंका की जेल में बंद भारतीय मछुआरों और जब्त नावों की रिहाई कराने के लिए भी पीएम मोदी से आह्वान किया है।

केंद्र पर तंज कसते हुए पीएम से स्टालिन ने की अपील

तमिलनाडु के सीएम ने भारतीय जनता पार्टी पर इस मुद्दे को लेकर राजनीति करने का आरोप भी लगाया है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पिछले 10 वर्षों में तमिलनाडु के मछुआरों की रक्षा करने में विफल रही है। इतना ही नहीं वह बिना कोई ठोस कार्रवाई किए कच्चातीवु मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि इस दिशा में केंद्र को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। केवल प्रधानमंत्री का सीधा हस्तक्षेप ही तमिल मछुआरों के लिए एक स्थायी समाधान ला सकता है।

जयशंकर ने क्यों नहीं किया श्रीलंका के हालिया दावों का खंडन ?

इस दौरान स्टालिन ने बड़ा सवाल भी किया। उन्होंने पूछा कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस मुद्दे पर श्रीलंका के हालिया दावों का खंडन क्यों नहीं किया है। दरअसल हाल ही में श्रीलंका के मत्स्य पालन मंत्री डगलस देवानंद ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि तमिलनाडु के मछुआरे अक्सर अतिक्रमण करते हैं। साथ ही उन्होंने कहा था कि कोलंबो कच्चातीवु द्वीप वापस नहीं करेगा।

भाजपा ने किया पलटवार

भाजपा ने उनके इस बयान पर पलटवार किया है। भाजपा प्रवक्ता नारायण तिरुपति ने उन्हें पुरानी बातें याद दिलाते हुए कहा कि केंद्र में जब कांग्रेस और तमिलनाडु में डीएमके की सरकार थी तभी 1974 में कच्चातीवु श्रीलंका को सौंप दिया गया था। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि डीएमके ने 14 साल तक केंद्र में सत्ता साझा की,लेकिन तब इस मुद्दे पर कुछ नहीं किया। उल्टा हमने अपनी सरकार में यह सुनिश्चित किया है कि श्रीलंकाई नौसेना कोई गोलीबारी न करे, जबकि कांग्रेस के शासन में लगभग 1,000 मछुआरे मारे गए थे।

श्रीलंका द्वारा जब्त की गई भारतीय मछुआरों की नौकाओं की नीलामी और भारतीय मछुआरों की आजीविका को नुकसान पहुंचाने के सवाल पर नारायण तिरुपति ने कहा कि वार्ता जारी है। हमने प्रभावित श्रीलंकाई तमिल मछुआरों और भारतीय तमिल मछुआरों के बीच कई दौर की बातचीत की है। लेकिन जब तक आप उनसे बात करके कोई समाधान नहीं निकालेंगे, यह समस्या समाप्त नहीं होगी।

1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को सौंप दिया कच्चातिवु द्वीप

कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा सा द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। 285 एकड़ हरित क्षेत्र 1976 तक भारत का था। हालांकि, श्रीलंका और भारत के बीच एक विवादित क्षेत्र है, जिस पर आज श्रीलंका हक जताता है। दरअसल, साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने समकक्ष श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। इन्हीं समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया।

कच्चातिवू द्वीप क्या महत्व है?

यह द्वीप सामरिक महत्व का था और इसका उपयोग मछुआरे करते थे। हालांकि इस द्वीप पर श्रीलंका लगातार दावा जताता रहा। यह मुद्दा तब उभरा जब भारत-श्रीलंका ने समुद्री सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए। साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया।

तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। समझौतों ने भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा चिह्नित कर दी। हालांकि, इस समझौते का तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने कड़ा विरोध किया था।

श्रीलंका में अलगाववादी समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के सक्रिय वर्षों के दौरान, श्रीलंकाई सरकार ने सैन्य अभियानों के मुद्दों को उठाते हुए पानी में श्रीलंकाई मछुआरों की आसान आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया था। 2009 में श्रीलंका ने पाक जलडमरूमध्य में अपनी समुद्री सीमा की कड़ी सुरक्षा शुरू कर दी। 2010 में एलटीटीई के साथ संघर्ष की समाप्ति के साथ श्रीलंकाई मछुआरों ने फिर से पाक खाड़ी में अपना आंदोलन शुरू कर दिया और अपने खोए हुए क्षेत्र को दोबारा हासिल कर लिया।

भारत में इस द्वीप को लेकर विवाद क्या है?

तमिलनाडु की तमाम सरकारें 1974 के समझौते को मानने से इनकार करती रहीं और श्रीलंका से द्वीप को दोबारा प्राप्त करने की मांग उठाती रहीं। 1991 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा समझौते के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया जिसके जरिए द्वीप को पुनः प्राप्त करने की मांग की गई थी।

2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं और कच्चातिवु समझौतों को रद्द करने की अपील की। उन्होंने कहा था कि श्रीलंका को कच्चातिवु उपहार में देने वाले देशों के बीच दो संधियां असंवैधानिक हैं। इसके अलावा साल 2011 में जयललिता ने एक बार फिर से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया।

मई 2022 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम मोदी की मौजूदगी में एक समारोह में मांग की थी कि कच्चातिवु द्वीप को भारत में पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पारंपरिक तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार अप्रभावित रहें, इसलिए इस संबंध में कार्रवाई करने का यह सही समय है।

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