सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: आईपीएस अधिकारी को माफ़ीनामा प्रकाशित करने का आदेश

Update: 2025-07-22 18:24 GMT
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: आईपीएस अधिकारी को माफ़ीनामा प्रकाशित करने का आदेश
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नई दिल्ली।

सुप्रीम कोर्ट ने एक आईपीएस महिला अधिकारी को वैवाहिक विवाद के मामले में अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग कर पति और ससुराल वालों को प्रताड़ित करने के लिए तीन दिन के भीतर प्रमुख अखबारों और सोशल मीडिया पर बिना शर्त माफ़ीनामा प्रकाशित करने का आदेश दिया है। अदालत ने यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दी गई विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए पारित किया।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 2018 से अलग रह रहे दंपत्ति के विवाह को भंग कर दिया। अदालत ने यह फैसला महिला अधिकारी द्वारा दायर स्थानांतरण याचिकाओं और अन्य लंबित मामलों को ध्यान में रखते हुए सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, महिला ने अपने रसूख का दुरुपयोग कर पति और उनके पिता को झूठे मामलों में फँसाया, जिससे उन्हें क्रमशः 109 और 103 दिनों तक जेल में रहना पड़ा। न्यायालय ने कहा कि इससे पूरे परिवार को गहरा मानसिक और शारीरिक आघात पहुँचा, जिसकी कोई भरपाई नहीं हो सकती।

पीठ ने महिला अधिकारी और उनके माता-पिता को निर्देश दिया कि वे एक प्रमुख हिंदी और एक अंग्रेजी दैनिक अखबार में बिना शर्त माफ़ीनामा प्रकाशित करें, और वही माफ़ी फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी प्रसारित की जाए।

हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह माफ़ी दायित्व स्वीकार करने के रूप में नहीं, बल्कि कानूनी लड़ाई को सौहार्दपूर्ण तरीके से समाप्त करने के उद्देश्य से मांगी गई है। इसका उनके वैधानिक अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

इस मामले में यह भी उल्लेखनीय है कि महिला और पुरुष पक्ष की ओर से कुल 30 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए थे। महिला के खिलाफ 10 मामले, पुरुष पक्ष के खिलाफ 15 मामले और शेष पांच केस परस्पर थे।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि महिला अपनी बेटी को अपने साथ रख सकती है, लेकिन पिता और उनके परिवार को उससे मिलने का अधिकार रहेगा। साथ ही महिला का पति और उनके परिवार की संपत्ति पर महिला का कोई दावा नहीं होगा।

अदालत ने निर्देश दिया कि भविष्य में अधिकारी अपने पद या प्रभाव का पति या उसके परिवार के खिलाफ इस्तेमाल न करें। अदालत ने इस फैसले को वैवाहिक विवादों में कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग पर सख्त चेतावनी के रूप में देखा है।

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