धूमधाम से मनाया जाएगा जन्माष्टमी का त्योहार, बजेंगे घंटा-घड़ियाल: घर-घर जन्मेंगे कन्हाई,भीलवाड़ा में सुरक्षा बढ़ाई, सादी वर्दी में भी रखेंगे नजर

Update: 2024-08-26 03:02 GMT

भीलवाड़ा में आज घर-घर जन्मेंगे कन्हाई, हर घर में भर में गूंजेगी मंगल बधाई...जन्माष्टमी को लेकर मंदिरों में झलकियां बनाई ओर सजावट की गई है, रात 12 बजे महा आरती के बाद प्रसाद वितरित होगा।इस बार बाला जी के मंदिर पर कल की घटना को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए जा रहे हे।

ज्योतिषाचार्यो के अनुसार इस बार जन्माष्टमी जयंती योग में मनाई जा रही है, जिस कारण भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी। और सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।कृष्ण जन्माष्टमी के दिन अष्टमी तिथि कब से कब तक-

अष्टमी तिथि आरम्भ: 26 अगस्त, 2024, प्रातः 03:39 बजे लग गई

अष्टमी तिथि समाप्त: 27 अगस्त, 2024, प्रातः 02:19 बजे होगी

पूजा का शुभ समय

निशिता पूजा (रात के समय) का समय: 27 अगस्त को रात 12:01 मिनट से 12:45 मिनट तक

आप इस दौरान 45 मिनट के शुभ मुहूर्त में कान्हा जी की आराधना कर सकते हैं और उनका जन्मोत्सव मना सकते हैं।



पारण का समय : रात 12.27 बजे

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग एक विशिष्ट प्रकार का योग है जो सप्ताह के किसी विशेष दिन कुछ नक्षत्रों के पड़ने पर बनता है। इन नक्षत्रों का संयोग नए कार्यों या व्यवसाय को करने के लिए शुभ माना जाता है। कुछ राशि के लोंगों के लिए जन्माष्टमी का त्योहार बहुत लकी साबिक होगा, जनके बारे में आपको भी जानना चाहिए। कुंभ राशि, सिंह राशि, वृषभ राशि, मेष राशि, इन चार राशियों के जातक के लिए यह त्योहार बेहद खास रहने वाला है।

इस विधि से खोले व्रत

जन्माष्टमी में कई लोग निराहार तो कई लोग फलाहार रखकर व्रत करते हैं। ऐसे में व्रत का पारण करते समय कुछ विशेष नियमों का ध्यान रखना चाहिए।

जन्माष्टमी व्रत का पारण कान्हा को भोग लगाने के बाद ही करें।

कान्हा के भोग में अर्पित पंजीरी, पंचामृत और माखन से व्रत खोलें।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सबको प्रसाद वितरित करने के बाद कान्हा केभोग से व्रत खोलना शुभ माना जाता है।


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जन्माष्टमी पर मोरपंख से करें ये उपाय

जन्माष्टमी के दिन घर के पूजास्थल में पांच मोरपंख रखें और प्रतिदिन इनकी पूजा करें। इक्कीस दिन बाद इन मोरपंख को तिजोरी या लॉकर में रख दें, ऐसा करने से धन-संपत्ति में वृद्धि होगी और अटके काम भी बनने लगेंगे।

इस बार रोहिणी नक्षत्र में है जन्माष्टमी

धार्मिक कथाओं के मुताबिक भगावन श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इसीलिए जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक 26 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत शाम 3 बजकर 54 मिनट से होगी और समापन 27 अगस्त को शाम 3 बजकर 39 मिनट पर होगा।

जरूर करें भगवान श्रीकृष्ण की ये आरती

आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला

श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली

लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक

चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।

गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग ग्वालिन संग।

अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा।

स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस।

जटा के बीच,हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद।

टेर सुन दीन दुखारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

ऐसे तैयार करे पूजा थाली

जन्माष्टमी के दिन कान्हा की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन पूजा थाली सजाते समय कुछ विशेष सामग्रियों का ध्यान रखना आवश्यक है। आइए जानते हैं क्या हैं वो सामग्रियां-

सिंहासन, बाजोट या झूला (चौकी, आसन), पंच पल्लव, पंचामृत, केले के पत्ते, औषधि, तुलसी दल, शुद्ध घी, दही, दूध, ऋतुफल, नैवेद्य या मिष्ठान्न, छोटी इलायची, लौंग मौली, इत्र की शीशी, श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर, गणेशजी की तस्वीर, अम्बिका जी की तस्वीर, भगवान के वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने के लिए वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने के लिए वस्त्र, जल कलश, सफेद कपड़ा, लाल कपड़ा, पंच रत्न, दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, बन्दनवार, ताम्बूल, नारियल, चावल, गेहूं, चंदन, यज्ञोपवीत 5, कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्ते, पुष्पमाला, कमलगट्टे, गुलाब और लाल कमल के फूल, दूर्वा, अर्घ्य पात्र,धूप बत्ती, अगरबत्ती, कपूर, केसर, तुलसीमाला, खड़ा धनिया, सप्तमृत्तिका, सप्तधान, कुशा व दूर्वा, पंच मेवा, गंगाजल, शहद, शक्कर, आदि

पूजा की पूरी विधि

भगवान कृष्ण के जन्म की पूजा विधि इस प्रकार है-

26 अगस्त की मध्याह्न रात के समय जल में काला तिल डालकर स्नान करें।

इसके बाद पूजा स्थल पर खीरे के अंदर बाल गोपाल की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

ध्यान रखें इस दिन डंठल और हल्की सी पत्तियों वाले खीरे को कान्हा की पूजा में उपयोग करें।

रात के 12 बजते ही खीरे के डंठल को किसी सिक्के से काटकर कान्हा का जन्म कराएं।

बाल गोपाल के जन्म के बाद लड्डू गोपाल की मूर्ति को पहले गंगा जल से स्नान कराएं। फिर पंचामृत स्नान की प्रक्रिया अपनाएं जिसमें मूर्ति को दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के स्नान कराएं

अब शुद्ध जल से स्नान कराएं।

इसके बाद शंख बजाकर बाल गोपाल के आने की खुशियां मनाएं और फिर विधिवत कुंज बिहारी की आरती गाएं।

पूजा के बाद खीरे को प्रसाद के तौर पर बांट दिया जाता है।


जन्माष्टमी 2024 मुहूर्त

इस साल कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूजा का मुहूर्त 26 अगस्त देर रात ठीक 12:00 से लेकर 27 अगस्त की सुबह 12 बजकर 45 मिनट तक रहने वाला है। ऐसे में आपके पास शुभ मुहूर्त में पूजा करने के लिए 45 मिनट का समय है।


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