15 मिनट में वापस लौट सकती है आंखों कि रोशनी

By :  vijay
Update: 2025-03-07 21:00 GMT

उम्र के बढ़ने से पर्दे में सूखापन आ जाता है जिससे आई ड्राई हो जाती है. दरसल आंखो में एक रेटिना पिगमेंट होता है जो उम्र के साथ-साथ डैमेज होना शुरु हो जाता है. ऐसे मरीजों के लिए अभी तक कोई परमानेंट इलाज नहीं था. एम्स में आर पी सेंटर के वरिष्ठ डॉ राजपाल ने टीवी9 भारतवर्ष से खास बातचीत में बताया कि जिस बीमारी का अभी तक कोई भी मेडिकल में इलाज नहीं है. महज एक या दो दवाई है जिसे मरीज को दिया जाता है जिसका असर भी बहुत अच्छा देखने को नहीं मिला है. उन मरीजों के लिए एक अच्छी खबर है. डॉ राजपाल ने कहा कि हमने एम्स आरपी सेंटर में पहली बार स्टेम सेल के माध्यम से इलाज किया है, जिसका परिणाम काफी बेहतर साबित हुआ है.

क्या है यह प्रक्रिया

डॉ राजपाल ने कहा कि हम स्टेम सेल को रेटिना में इंजेक्ट करते हैं. यह ठीक उसी जगह पर करते हैं जहां स्टेम सेल की डिफीसिएंसी होती है. इसका फायदा यह होता है कि वहां वह सेल रीजेनरेट हो जाता है. उन्होंने कहा कि इस पूरे प्रोसेस में 2 से तीन महीने का वक्त लगता है. डॉ राजपाल ने बताया कि 2 से 3 महीने में मरीज के आंखों की रौशनी पहले से काफी बेहतर हो जाती है. जिन लोगों में ड्रॉय आई की वजह से अंधापन हो जाता है उन मरीजों में इस तकनीक से इंप्रूवमेंट होने की संभावना काफी अधिक है.

कहां से आ रहा है स्टेम सेल

डॉ राजपाल ने कहा कि पूरा देसी सिस्टम पर प्रयोग चल रहा है. उन्होंने कहा कि एम्स दिल्ली में यह स्टेम सेल बैंगलुरु से आ रहा है और बताया कि फिलहाल बेंगलुरु में इसे जनरेट किया जा रहा है. उन्होंने ये भी कहा कि हमने स्टेम सेल के ऊपर काफी रिसर्च किया है.

सिंथेटिक कॉर्निया बना वरदान

एम्स में आरपी सेंटर की वरिष्ठ डॉ नम्रता साह ने कहा कि कॉर्निया की कमी को दूर करने के लिए सिंथेटिक कॉर्निया पर काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अबतक एम्स में 72 मरीजों को सिंथेटिक कॉर्निया लगाया जा चुका है. इसके काफी अच्छे परिणाम आए हैं. डॉ नम्रता ने कहा कि सिंथेटिक कॉर्निया भी नॉर्मल कॉर्निया के तरह ही होता है. हमने जो स्टडी किया है उसमें नॉर्मल कॉर्निया लगाने और सिंथेटिक कॉर्निया लगाने के ऊपर परिणाम पर देखा है तो दोनों के परिणाम लगभग एक तरह के आए हैं. उन्हेंन कहा कि खासकर कैरटॉकोनस के जो लोग होते हैं जिनमें सिंथेटिक कॉर्निया लगया जाता है. इसमें कॉर्नियल थिकनेस उतनी ही रहती है, कम नहीं होती है. जबकि ह्यूमन डोनर को जब हम कॉर्निया लगते हैं तो उसमें देखा गया है कि कुछ समय के बाद कॉर्नियल थिकनेस कम होती जाती है सिंथेटिक कार्निया का इंटीग्रेशन भी काफी अच्छा होता है.

ड्राई आई सिंड्रोम किसी को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ यह अधिक आम हो जाता है. सूखी आंखें लगभग एक तिहाई वृद्ध लोगों को प्रभावित करती हैं, और लगभग 10 में से 1 युवा व्यक्ति को. महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित होती हैं.

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