बिजली का झटका देकर डॉक्टरों ने बचा ली हार्ट अटैक से पीड़ित बुजुर्ग की जान: भीलवाड़ा में पहली बार बिजली का झटका देने वाले डिवाइस को किया इंप्लांट
भीलवाड़ा ( राजकुमार माली )अकसर आपने सुना होगा कि बिजली का झटका लगने से किसी की मौत हो गई, लेकिन क्या आपको पता है कि शरीर में बिजली का झटका देने वाले डिवाइस को इंप्लांट करके हार्ट अटैक के मरीज (Heart Patient) की जान भी बचाई जा सकती है? जी हां,सिम्स हॉस्पिटल की कार्डियोलॉजी टीम ने भीलवाड़ा में पहली बार सबक्यूटेनियस इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफिब्रिलेटर (Subcutaneous Implantable Defibrillator,(S-ICD) इम्प्लांट करके 53 वर्षीय बुजुर्ग को नया जीवन दिया है. बुजुर्ग व्यक्ति असंतुलित धड़कन का मरीज था और अब अचानक कार्डियकअरेस्ट आने का खतरा था. इसे देखते हुए डॉक्टरों ने इस प्रक्रिया को अपनाने का निर्णय लिया.
अस्पताल आने से पहले सहाड़ा क्षेत्र के रहने वाले मिया चंद जाट को हार्ट अटैक आ चुका था और उसे सांस फूलने की शिकायत थी. जांच से पता चला कि उसके दिल के निचले चेम्बर से एक्सट्रा बीट्स आ रही है और उसकी दिल की पंपिंग क्षमता (लेफ्ट वेंट्रिकुलर इजेक्शन फ्रेक्शन) काफी कम होकर 30% रह गई थी. इस तरह के मरीज़ों में दिल की गति के अचानक रुकने की आशंका बहुत ज़्यादा होती है और इनमें से लगभग 50% मरीज़ों की मौत अचानक कार्डियक अरेस्ट आने से हो जाती है. ऐसे में इस मरीज की जान को काफी खतरा था.
बिजली का झटका देता है डिवाइस
डा पवन ओला के मुताबिक, एस-आईसीडी एक ऐसी तकनीक है, जिसमें मरीज की सर्जरी कर उसके शरीर में एक डिवाइस फिट किया जाता है. ये डिवाइस सिर्फ 10 सेकंड से भी कम समय में कार्डियक अरेस्ट का पता लगाकर अपने आप बिजली का झटका देता है, जिससे मरीज़ की जान बचाई जा सकती है.
डॉ. ओला के मुताबिक, इस केस में मरीज़ की स्थिति को ध्यान में रखकर और परिवार से बात करने के बाद डॉक्टरों ने मरीज़ में एस-आईसीडी लगाने का फैसला किया. लोकल एनेस्थेसिया देकर लगभग 45 मिनट में इसे लगाने का काम पूरा कर लिया गया. डॉ. ने कहा कि पारंपरिक ईसीडी में लीड होता है जिसे सुक्लावियन नस के ज़रिए बाएं क्लेविकले के नीचे पंचर करके दाएं वेंट्रिकल में इंप्लांट किया जाता है, लेकिन सबक्यूटेनियस आईसीडी की नई तकनीक में दिल में कोई लीड इंप्लांट नहीं किया जाता. डिवाइस के साथ-साथ लीड को सब- ऐक्सलेरी एरिया में और त्वचा के नीचे छाती की बांयी तरफ के सामने इंप्लांट किया जाता है. क्योंकि इसमें दिल में किसी तरह की प्रक्रिया नहीं की जाती और कोई इंट्रावैस्कुलर लीड नहीं होती, इसलिए इससे जुड़ी जटिलताओं से से पूरी तरह बचाव हो जाता है.
अधिक सुरक्षित है ये तकनीक
डॉओला ने बताया कि सबक्यूटेनियस आईसीडी स्टैंडर्ड आईसीडी की तुलना में बहुत ज़्यादा सुरक्षित है और सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें संक्रमण की संभावना बहुत कम है. सिस्टम एकसबक्यूटेनियस इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल करता है जो किसी ईसीजी की तरह हार्ट रिदम का विश्लेषण करता है. यह रिदम को प्रभावी तरीके से समझकर जीवन को नुकसान पहुंचाने वाली रिदम को सामान्य रिदम में बदल देता है.
