प्रेमानंद जी से सीखें असली और नकली साधु में फर्क, ये है आसान तरीका
अपने जीवन में शांति पाने के लिए लोग अध्यात्म के तरफ अक्सर मुड़ते नजर आते हैं. मगर कभी-कभी सही गुरु का मार्गदर्शन न मिलने के कारण लोग अक्सर अपने रास्ते से भटक जाते हैं. प्रेमानंद जी महाराज को आज भला कौन नहीं जानता होगा? आज के समय में लोग दूर-दूर से उनके सत्संग को सुनने के लिए आते हैं. उनके द्वारा कही गई बातें कई लोगों के लिए मार्गदर्शन का काम करती हैं. आज के समय में सोशल मीडिया के इस दौर में कई लोग आसानी से फेमस हो जाते हैं. कई लोग संतों का रूप धारण करते हैं और लोग उनकी बातों को मानने भी लगते हैं. इन लोगों के बारे में प्रेमानंद महाराज क्या कहते हैं?
संत कौन है?
प्रेमानंद जी महाराज के सत्संग के दौरान एक सवाल आता है कि संत कौन है? संत किसको मानें? क्या संत को बाहरी वेश से जाना जाए. इस सवाल के जवाब में प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि जिसने तीन चीजों पर जीत हासिल कर लिया है वो ही साधु है और महात्मा है. जिन तीन चीजों का जिक्र प्रेमानंद जी महाराज जी करते हैं वो है काम पर विजय, धन पर विजय और कीर्ति पर विजय. आगे प्रेमानंद जी महाराज संन्यास के ऊपर ये कहते हैं बिना गुरु के संन्यास धारण नहीं किया जाता है.
प्रेमानंद जी महाराज ने साधु के वेश पर क्या कहा?
सत्संग में आगे प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि वैराग्य तो गुरु के शरण में ही आता है. जो लोग सिर्फ वेश धारण करते हैं ऐसे लोगों में वैराग्य नहीं आता है. उनमें थोड़ा प्रमाद आता है और कायरता आती है. ऐसे लोग नौटंकी करते हैं. आगे प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं जब वैराग्य आता है तब उस इंसान को भगवत प्राप्ति होती है. आगे प्रेमानंद जी महाराज पैसे की बात करते हुए कहते हैं कि हर जगह आजकल पैसे की बात है यहां तक सत्संग में भी और इस पैसे से भोग की चीज का सेवन करने वाला व्यक्ति ज्ञानी नहीं हो सकता.