सोशल मीडिया: बच्चों की सुरक्षा का संकट और नाकाम सुरक्षा उपाय": इंस्टाग्राम के सुरक्षा टूल्स नाकाम, बच्चों तक पहुंच रहा हानिकारक कंटेंट

Update: 2025-09-26 05:03 GMT

 

आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया हर उम्र के लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। खासकर बच्चे और किशोर इसका व्यापक उपयोग कर रहे हैं। लेकिन हाल ही में सामने आई एक चौंकाने वाली रिसर्च ने सोशल मीडिया की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। अमेरिका के साइबर सिक्योरिटी फॉर डेमोक्रेसी रिसर्च सेंटर और बाल सुरक्षा समूहों की एक ताजा रिसर्च में खुलासा हुआ है कि इंस्टाग्राम जैसे लोकप्रिय प्लेटफॉर्म पर बच्चों को हानिकारक कंटेंट से बचाने के लिए बनाए गए सुरक्षा टूल्स प्रभावी नहीं हैं। रिसर्च के अनुसार, 47 में से 30 सुरक्षा टूल्स या तो पूरी तरह अप्रभावी हैं या अब अस्तित्व में ही नहीं हैं।

बच्चों पर पड़ रहा गंभीर असर:

शोधकर्ताओं ने फर्जी इंस्टाग्राम अकाउंट्स बनाकर जांच की और पाया कि 13 साल से कम उम्र के बच्चों को आत्महत्या, आत्म-क्षति, और भोजन संबंधी विकारों से जुड़ा कंटेंट आसानी से दिखाया जा रहा है। इतना ही नहीं, इंस्टाग्राम का एल्गोरिद्म बच्चों को ऐसे वीडियो पोस्ट करने के लिए प्रेरित करता है, जिन पर वयस्कों की ओर से आपत्तिजनक और अनुचित कमेंट्स आते हैं। यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।

कॉर्पोरेट प्राथमिकताओं पर सवाल:

ब्रिटेन की मॉली रोज़ फाउंडेशन ने इसे मेटा के कॉर्पोरेट कल्चर की विफलता करार दिया है। फाउंडेशन का कहना है कि मेटा बच्चों की सुरक्षा से ज्यादा मुनाफे और यूजर एंगेजमेंट को प्राथमिकता देता है। यह फाउंडेशन 14 वर्षीय मॉली रसेल की आत्महत्या के बाद स्थापित किया गया था, जिसकी वजह ऑनलाइन हानिकारक कंटेंट को माना गया था।

मेटा का जवाब:

इंस्टाग्राम की पैरेंट कंपनी मेटा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। कंपनी का दावा है कि उनके प्लेटफॉर्म पर बच्चों को पहले की तुलना में कम हानिकारक कंटेंट दिख रहा है। साथ ही, अभिभावकों के लिए बेहतर निगरानी टूल्स उपलब्ध कराए गए हैं, जो बच्चों की सुरक्षा में मदद कर रहे हैं।

ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट की भूमिका:

रिसर्च में ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट का भी जिक्र किया गया है, जो सोशल मीडिया कंपनियों को कानूनी रूप से बाध्य करता है कि वे बच्चों और युवाओं को आत्महत्या, आत्म-क्षति, और अन्य खतरनाक सामग्री से बचाएं। लेकिन रिसर्च बताती है कि ज्यादातर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स इस जिम्मेदारी को निभाने में नाकाम रहे हैं।

 

यह रिसर्च एक बार फिर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही और बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के महत्व को रेखांकित करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारों, तकनीकी कंपनियों, और अभिभावकों को मिलकर ऐसे कदम उठाने होंगे, जो बच्चों को डिजिटल दुनिया के खतरों से बचा सकें। साथ ही, सोशल मीडिया कंपनियों को अपने एल्गोरिद्म और सुरक्षा टूल्स को और प्रभावी बनाने की जरूरत है।v

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