युवा केवल छह घंटे की नींद को सामान्य न समझें, विशेषज्ञों ने बताया गंभीर खतरा

Update: 2025-12-21 04:30 GMT


बॉलीवुड अभिनेता आयुष्मान खुराना का हाल में वायरल हुआ वीडियो चर्चा में है, जिसमें वह बताते हैं कि उनकी नींद अधिकतम छह घंटे ही हो पाती है। यह बात सुनने में भले सामान्य लगे, लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञ युवाओं में इतनी कम नींद को गंभीर स्वास्थ्य खतरे का संकेत मान रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि छह घंटे की नींद को सामान्य या पर्याप्त मानना एक बड़ा भ्रम है।

कम नींद शरीर और दिमाग पर धीमे जहर की तरह असर डालती है। इसका शुरुआती प्रभाव एकाग्रता में कमी, कमजोर निर्णय क्षमता, चिड़चिड़ापन, मूड स्विंग और सुस्त रिएक्शन टाइम के रूप में दिखता है। लंबे समय तक कम सोने से इम्यून सिस्टम कमजोर होता है और हार्मोनल संतुलन बिगड़ने लगता है।

डिमेंशिया और स्ट्रोक का बढ़ता जोखिम

इंदौर में आयोजित न्यूरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की 73वीं राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ‘एनएसआईकॉन 2025’ में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि छह घंटे की नींद पर निर्भर लोग अल्जाइमर, डिमेंशिया, स्ट्रोक और अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के अधिक जोखिम में रहते हैं।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर सुरेश्वर मोहंती ने बताया कि शरीर और दिमाग की वास्तविक मरम्मत रात की नींद के दौरान ही होती है। लगातार छह घंटे या इससे कम नींद लेने से हृदय और मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। उनका सुझाव है कि एक स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन सात से आठ घंटे नींद अवश्य लेनी चाहिए ताकि मस्तिष्क अपनी पूरी क्षमता से काम कर सके और मेटाबॉलिज्म संतुलित रहे।

नींद शरीर का रीसेट बटन

फोर्टिस मोहाली के न्यूरोसर्जन डॉ. वीके खोसला कहते हैं कि कम सोना प्रोडक्टिविटी बढ़ाता है, यह धारणा गलत है। नींद शरीर का रीसेट बटन है, जिसे कम कर देने पर स्वास्थ्य को ही नुकसान होता है। वे प्रतिदिन सात से नौ घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद लेने की सलाह देते हैं।

सिर्फ छह घंटे की नींद से होने वाले नुकसान

दिमाग में टॉक्सिन हट नहीं पाते – ग्लिम्फेटिक सिस्टम पूरी सफाई नहीं कर पाता।

कमजोर याददाश्त – प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स की गतिविधि घटती है, निर्णय क्षमता कमजोर होती है।

स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा – कम नींद से स्ट्रोक का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है।

मूड स्विंग और तनाव – सेरोटोनिन और डोपामिन का संतुलन बिगड़ता है, एंग्जायटी बढ़ती है।

इम्यून सिस्टम कमजोर – साइटोकाइन्स कम बनते हैं, संक्रमण आसानी से पकड़ता है।

दिमाग तेजी से बूढ़ा – न्यूरॉन डैमेज और ग्रे मैटर लॉस की गति बढ़ जाती है।

विशेषज्ञों का स्पष्ट संदेश है कि कम नींद को आदत या मजबूरी नहीं बनाना चाहिए। अच्छी नींद ही अच्छी सेहत की बुनियाद है

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