केवल ट्रैप से दोष सिद्ध नहीं, स्पष्ट मांग और लंबित काम जरूरी: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2025-12-20 18:43 GMT


जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामलों में एक अहम कानूनी सिद्धांत स्पष्ट करते हुए कहा है कि किसी भी आरोपी को दोषी ठहराने के लिए केवल ट्रैप की कार्रवाई पर्याप्त नहीं मानी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि रिश्वत के मामलों में दोष सिद्ध करने के लिए स्पष्ट और ठोस मांग, रिश्वत की विधिवत बरामदगी तथा आरोपी के पास शिकायतकर्ता का कोई लंबित कार्य होना आवश्यक है।

जस्टिस आनंद शर्मा की एकल पीठ ने यह फैसला रेलवे सुरक्षा बल के एक इंस्पेक्टर और दो कॉन्स्टेबलों की अपील पर सुनवाई करते हुए दिया। तीनों को एंटी करप्शन ब्यूरो ने 22 जुलाई 2007 को पांच हजार रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था। एसीबी कोर्ट नंबर एक, जयपुर ने 29 मई 2023 को तीनों को दोषी मानते हुए एक एक वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी। इस सजा के खिलाफ दायर अपील पर हाईकोर्ट ने एसीबी कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए तीनों आरोपियों को बरी कर दिया।

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि इस मामले में रिश्वत की कोई स्पष्ट और ठोस मांग साबित नहीं हो सकी। एसीबी द्वारा की गई ऑडियो रिकॉर्डिंग में भी डिमांड स्पष्ट रूप से सामने नहीं आई। ट्रैप के दौरान अभियोजन का यह दावा था कि थानाधिकारी के इशारे पर शिकायतकर्ता ने कॉन्स्टेबल को रिश्वत की रकम दी, लेकिन संदेह होने पर कॉन्स्टेबल ने वह राशि अपनी जेब से निकालकर जमीन पर फेंक दी। बाद में एसीबी ने नोट फर्श से बरामद किए, जबकि कॉन्स्टेबल के हाथों पर लगाए गए रसायन का कोई रंग नहीं छूटा।

कोर्ट ने यह भी महत्वपूर्ण माना कि शिकायतकर्ता का कथित काम आरोपियों के पास लंबित ही नहीं था। शिकायतकर्ता का कहना था कि उसे टिकट ब्लैक करने के मामले से बाहर निकालने के एवज में रिश्वत मांगी गई, जबकि रिकॉर्ड से स्पष्ट हुआ कि उस मामले की जांच संबंधित थानाधिकारी के पास लंबित नहीं थी। वह पहले ही जांच को उच्चाधिकारियों को चार्जशीट के लिए भेज चुका था और ट्रैप से पहले ही चार्जशीट तैयार हो चुकी थी।

हाईकोर्ट ने एसीबी की जांच प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि ट्रैप की कार्रवाई सीकर रेलवे मजिस्ट्रेट कोर्ट परिसर में हुई थी, इसके बावजूद न तो वहां मौजूद मजिस्ट्रेट को और न ही किसी अन्य स्वतंत्र व्यक्ति को गवाह बनाया गया। मामले में सभी गवाह एसीबी के ही कर्मचारी थे और उनकी गवाही भी अभियोजन की कहानी को मजबूती से साबित नहीं कर सकी। इसके अलावा तीनों आरोपियों के खिलाफ जारी अभियोजन स्वीकृति आदेशों की भाषा एक जैसी होना भी कोर्ट को संदेहास्पद लगा।

मामले की पृष्ठभूमि में बताया गया कि शिकायतकर्ता चिरंजीलाल और उसके भाई को आरपीएफ रींगस ने फर्जी नामों से टिकट बुक कर ब्लैक करने के आरोप में पकड़ा था। इसके बाद शिकायतकर्ता ने एसीबी में आरोप लगाया कि पुलिसकर्मी उसका नाम केस से हटाने के लिए पांच हजार रुपये की रिश्वत मांग रहे हैं। इसी शिकायत के आधार पर वर्ष 2007 में ट्रैप की कार्रवाई की गई थी।

हाईकोर्ट में आरोपियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता माधव मित्र सहित अन्य वकीलों ने पक्ष रखा। सभी तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार के बाद कोर्ट ने अभियोजन की कहानी को संदेहपूर्ण मानते हुए तीनों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया।

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