ऋषि पंचमी की ज्योतिषीय एवं पौराणिक मान्यता – डॉ शर्मा

By :  vijay
Update: 2024-09-07 13:09 GMT



निंबाहेड़ा 07 सितंबर 2024,

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी ऋषि पंचमी के रुप में मनाई जाती हैं। इस वर्ष ऋषि पंचमी व्रत 08 सितंबर के दिन किया जाना हैं। ऋषि पंचमी का व्रत सभी के लिए फल दायक होता हैं। इस व्रत को श्रद्धा व भक्ति के साथ मनाया जाता हैं। आज के दिन ऋषियों का पूर्ण विधि-विधान से पूजन कर कथा श्रवण करने का बहुत महत्व होता हैं। उक्त जानकारी देते हुए श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय कल्याण लोक जावदा के सहायक आचार्य (ज्योतिष) डॉ ललित किशोर शर्मा ने बताया कि यह व्रत पापों का नाश करने वाला व श्रेष्ठ फलदायी हैं। यह व्रत और ऋषियों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता, समर्पण एवं सम्मान की भावना को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण आधार बनता हैं।

पूजन:

पूर्वकाल में यह व्रत समस्त वर्णों के पुरुषों के लिए बताया गया था, किन्तु समय के साथ-साथ अब यह अधिकांशत: स्त्रियों द्वारा किया जाता हैं। इस दिन पवित्र नदीयों में स्नान का भी बहुत महत्व होता हैं। सप्त ऋषियों की प्रतिमाओं को स्थापित करके उन्हें पंचामृत में स्नान करना चाहिए, तत्पश्चात उन पर चन्दन का लेप लगाना चाहिए, फूलों एवं सुगन्धित पदार्थों, धूप, दीप इत्यादि अर्पण करने चाहिए तथा श्वेत वस्त्रों, यज्ञोपवीतों और नैवेद्य से पूजा और मंत्र जाप करना चाहिए।

ऋषि पंचमी कथा:

एक समय विदर्भ देश में उत्तक नाम का ब्राह्मण अपनी पतिव्रता पत्नी के साथ निवास करता था। उसके परिवार में एक पुत्र व एक पुत्री थी। ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का विवाह अच्छे ब्राह्मण कुल में कर दिया, परंतु काल के प्रभाव स्वरुप कन्या का पति अकाल मृत्यु को प्राप्त होता हैं और वह विधवा हो जाती हैं। वह अपने पिता के घर लौट आती हैं। एक दिन आधी रात में लड़की के शरीर में कीड़े उत्पन्न होने लगते हैं। अपनी कन्या के शरीर पर कीड़े देखकर माता-पिता दुख से व्यथित हो जाते हैं और पुत्री को उत्तक ॠषि के पास ले जाते हैं। अपनी पुत्री की इस हालत के विषय में जानने की प्रयास करते हैं। उत्तक ऋषि अपने ज्ञान से उस कन्या के पूर्व जन्म का पूर्ण विवरण उसके माता-पिता को बताते हैं और कहते हैं कि कन्या पूर्व जन्म में ब्राह्मणी थी और इसने एक बार रजस्वला होने पर भी घर बर्तन इत्यादि छू लिए थे और काम करने लगी। बस इसी पाप के कारण इसके शरीर पर कीड़े पड़ गए। शास्त्रों के अनुसार रजस्वला स्त्री का कार्य करना निषेध हैं, परंतु इसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और इसे इसका दण्ड भोगना पड़ रहा हैं। ऋषि कहते हैं कि यदि यह कन्या ऋषि पंचमी का व्रत करें और श्रद्धा भाव के साथ पूजा तथा क्षमा प्रार्थना करें तो उसे अपने पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाएगी। इस प्रकार कन्या द्वारा ऋषि पंचमी का व्रत करने से उसे अपने पाप से मुक्ति प्राप्त होती हैं।

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