चित्तौडगढ़ । युवक कांग्रेस विधि विभाग पूर्व प्रदेश संयोजक एडवोकेट गोपाल सालवी (सुरजना) ने बताया कि राजस्थानी भाषा का इतिहास 1300 वर्ष पुराना है फिर भी राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता से वंचित रखा गया हैं। जबकि राजस्थानी भाषा को देश-विदेश के भाषाविदों द्वारा एक महान देशप्रेम सिखाने वाली विपुल शब्द भण्डार युक्त समृद्व तथा स्वतंत्र भाषा माना हैं। हिन्दी का आदिकाल राजस्थानी ही हैं।
विदेशों मे भी लोकप्रिय है यह राजस्थानी भाषा। शिकागो विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई भाषा विभाग मे राजस्थानी एक विषय की रूप मे पढायी जा रही है। पाकिस्ताान मे भी राजस्थानी ‘‘कायदो’’ नाम से व्याकरण चलती हैं। राजस्थान मे मीरा की भक्ति, जंबोजी की वाणी, तेजाजी की वाणी सभी राजस्थानी मे ही हैं। देश और दुनिया में राजस्थान की पहचान मीरा की धरती की रूप में हैं। लेकिन मीरा ने श्रीकृष्ण की भक्ति में जिस भाषा मंे भजन किए जिस भाषा की वजह से मीरा का यश व सम्मान बढ़ा वो भाषा अपने सम्मान की बाट जोह रही हैं। वीरों की धरती राजस्थान के महाराणा प्रताप का नाम और उनके शौर्य के बारे में पूरी दुनिया जानती है लेकिन उसी राणा प्रताप के शौर्य का सदियों तक जिस भाषा में बखान हुआ वो भाषा अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।
भाषा की अनिवार्यता इसलिए है कि उस प्रान्त के लोग, उस प्रान्त की भौगोलिक , आर्थिक, सामाजिक सभी तरह की परिस्थितियों से परिचित होते हैं। अगर राजस्थानी भाषा को मान्यता नही मिली तो परिवार, संस्कृति सब खत्म हो जाऐगें। राजस्थानी भाषा को मान्यता न मिलने के कारण यहॉ की कला, संस्कृति, विरासत और संस्कार जड़ से नष्ट हो रहे हैं। विगत कई वर्षो के बावजुद राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण हैं। सरकार ने राजस्थानी भाषा को मान्यता नही देकर प्रदेश के करोड़ो लोगों की जन-भावना का अपमान किया हैं। राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से राष्ट्र भाषा हिन्दी सुदृढ़ होगी। राजस्थान के बेरोजगारों को रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होगें। राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने से राजस्थान राज्य के प्रत्येक जिले के लोगों को शिक्षा और रोजगार प्राप्त करने मे मदद मिलेगी। मातृभाषा में जो ताकत है वह दुसरी भाषा में नही है। अपनत्व व आनन्द की परम अनुभूति तभी होती है जब हम राजस्थानी भाषा मे किसी से बात करते हैं। राजस्थानी भाषा को शीघ्र आठवीं अनुसूचि में सम्मिलित करवाने हेतु संबंधित विधेयक लाने बाबत निर्णय किये जावें ताकि वर्षो से लम्बित यह मांग पूरी हो सके। संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं को जीवित रखने के लिए राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलनी चाहिए। राजस्थानी भाषा से साहित्य एवं संस्कृति का विकास होगा तथा हमारा वजूद कायम रहेगा। राजस्थानी भाषा के संवर्धन मे ही राजस्थान का सर्वांगीण विकास छुपा हैं।
एडवोकेट गोपाल सालवी (सुरजना) ने मांग की कि कई दशकों से लम्बित उक्त मांग को पूरी कर राजस्थानी भाषा को अपना हक व सम्मान मिले।