राजस्थान के 700 बीएड कॉलेजों पर संकट गहराया,बंद होने की कगार पर, छात्रों का भविष्य अधर में

Update: 2025-10-31 03:17 GMT

 

जयपुर. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) लागू होने के पांच साल बाद भी राजस्थान में इसका असर शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों तक नहीं पहुंच पाया है। एनईपी के तहत तय नई व्यवस्था को लेकर राज्य सरकार और उच्च शिक्षा विभाग की सुस्ती अब 700 से अधिक बीएड कॉलेजों पर संकट बन गई है। राज्य सरकार की ओर से सामान्य एकेडमिक कॉलेजों को एनओसी नहीं दिए जाने से ये कॉलेज भविष्य को लेकर असमंजस में हैं।

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने एनईपी के तहत स्पष्ट गाइडलाइन जारी की है कि अब बीएड कॉलेजों को मल्टी-डिसिप्लिनरी संस्थान के रूप में संचालित किया जाएगा। यानी ये कॉलेज अब केवल शिक्षक प्रशिक्षण तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि इन्हें विज्ञान, कला, समाजशास्त्र, मानविकी और तकनीकी विषयों के पाठ्यक्रम भी चलाने होंगे। ऐसा नहीं करने पर वर्ष 2030 के बाद उन्हें बीएड पाठ्यक्रम में प्रवेश की अनुमति नहीं मिलेगी।

इस गाइडलाइन के बाद राज्य के बीएड कॉलेज संचालकों ने उच्च शिक्षा विभाग से सामान्य एकेडमिक कॉलेजों की मान्यता के लिए एनओसी मांगी, लेकिन विभाग ने नए कॉलेज खोलने पर रोक का हवाला देकर अनुमति देने से इनकार कर दिया। कॉलेज आयुक्तालय ने 2022 में यह रोक इसलिए लगाई थी क्योंकि उस समय निजी महाविद्यालयों की संख्या तेजी से बढ़ी थी। लेकिन दो वर्ष बाद भी यह रोक बरकरार है, जिससे एनईपी लागू करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हो पाई है।

अभी तक प्रदेश के बीएड कॉलेज केवल शिक्षक शिक्षा से जुड़े विषय ही पढ़ा रहे हैं। लेकिन नई नीति के तहत उन्हें एक व्यापक शैक्षिक ढांचे का हिस्सा बनना होगा। इसके लिए उन्हें जरूरी ढांचागत बदलाव, नए विषयों की स्वीकृति और फैकल्टी नियुक्ति करनी होगी। लेकिन राज्य सरकार की अनुमति के बिना यह संभव नहीं है।

विभाग ने इस विषय पर एक कमेटी भी बनाई थी, जिसने बीएड कॉलेजों को सामान्य एकेडमिक कॉलेजों के रूप में मान्यता देने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद मामला अब तक ठंडे बस्ते में है। परिणामस्वरूप, हर साल बीएड में दाखिला लेने वाले करीब दो लाख छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है।

बीएड कॉलेज संचालकों का कहना है कि राज्य सरकार और विभाग के बीच तालमेल की कमी शिक्षा की गुणवत्ता पर भी असर डाल रही है। एनईपी को लागू करने के नाम पर केवल बैठकों और रिपोर्टों तक सीमित रह जाने से शिक्षण संस्थान दिशा विहीन हो गए हैं। अगर सरकार ने जल्द ठोस निर्णय नहीं लिया, तो 2030 तक राजस्थान के अधिकांश बीएड कॉलेज बंद होने की स्थिति में पहुंच सकते हैं, जिससे न केवल शिक्षकों की तैयारी प्रभावित होगी बल्कि प्रदेश में उच्च शिक्षा की साख पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।

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