प्राइवेट पार्ट में गोल्ड : अबू धाबी से जयपुर तक एक स्मगलिंग का सफर
जयपुर। जैसे ही अबू धाबी से फ्लाइट EY 366 जयपुर एयरपोर्ट पर उतरी, किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस फ्लाइट का एक यात्री अपने भीतर एक रहस्य छुपाए हुए होगा। ब्यावर का रहने वाला महेंद्र खान—एक आम सा चेहरा, लेकिन उसकी चाल और हरकतों में कुछ अलग था। जब कस्टम अधिकारियों की नज़र उस पर पड़ी, तो संदेह की छोटी सी चिंगारी फूट पड़ी।
महेंद्र को जांच के लिए रोकने के बाद एक्स-रे की स्क्रीन पर एक छवि उभरी—ऐसी छवि, जो शायद किसी अपराधी के मस्तिष्क में भी कांप पैदा कर दे। उसके रेक्टम में गोल्ड के तीन टुकड़े, प्लास्टिक में लिपटे हुए, जैसे अपराध की एक गुप्त दस्तक। 99.5 प्रतिशत शुद्धता के इन टुकड़ों का वजन लगभग एक किलो था, जिनकी कीमत 90 लाख रुपए से भी अधिक आंकी गई।
गोल्ड की चमक और अपराध का अंधेरा
पुलिस और डॉक्टर्स ने महेंद्र की सुरक्षा में ऑपरेशन शुरू किया। दो दिनों की कड़ी मशक्कत और सावधानी के बाद, उन्होंने गोल्ड को बाहर निकाला। जैसे ही प्लास्टिक से लिपटे सोने के टुकड़े सामने आए, एक मूक अपराध उजागर हुआ। इसे न केवल प्रशासन की सतर्कता ने पकड़ा, बल्कि तस्करी की एक नई परत भी खोली, जो सोने की बढ़ती कीमतों के चलते और गहरी होती जा रही थी।
महेंद्र का मूक चेहरा और आँखों की गहरी खामोशी, शायद उसके भीतर के डर और अंधकार का साक्षात उदाहरण थे। पकड़े जाने के बाद महेंद्र को कोर्ट में पेश किया गया, जहाँ उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
तस्करी की नई तकनीकें—पुराने तरीके हो चुके हैं बासी
कस्टम अधिकारियों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। पिछले 8 महीनों में, ऐसी ही तस्करी की कई घटनाएँ सामने आईं हैं। इस बार की घटना में, महेंद्र ने गोल्ड को छुपाने के लिए रेक्टम का उपयोग किया था—एक तरीका, जो अब आम हो चला है। सोने के धागों वाली साड़ी, प्रेस, सिलाई मशीन, और रेडियो में गोल्ड छुपाने जैसी पारंपरिक विधियाँ अब पुरानी पड़ चुकी हैं। अब, कंडोम में पेस्ट बनाकर, या अंडरगार्मेंट्स में गुप्त पॉकेट बनाकर सोने की तस्करी की जाती है।
सचमुच, जैसे ही सोने के प्रति लोगों का मोह बढ़ता है, वैसे ही अपराधियों का रचनात्मकता का स्तर भी नई ऊंचाइयों तक पहुंच रहा है। यह केस महज़ एक कहानी नहीं, बल्कि उस काले बाज़ार का हिस्सा है जहाँ सोने की चमक अपराध के अंधेरे में ढल जाती है।