सातवां दिन : सम्यग् ज्ञान से आचरण को शुद्ध करके मोक्ष प्राप्त करें - आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर

Update: 2024-10-15 08:38 GMT

उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में तपोगच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ में रामचन्द्र सुरिश्वर महाराज के समुदाय के पट्टधर, गीतार्थ प्रवर, प्रवचनप्रभावक आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर आदि ठाणा द्वारा चातुर्मास काल के दौरान महाभारत पर प्रतिदिन प्रवचन दिए जा रहे है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि मंगलवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे संतों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। वहीं नो दिवसीय नवपद की आयंबिल ओली सामूहिक आयोजन हो रहा है। आयड़ तीर्थ में 90 तपस्वी नवपद की आयंबिल ओली का सामूहिक तप कर रहे है।

नाहर ने बताया कि मंगलवार को आयोजित धर्मसभा में आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर ने श्री नवपद की आराधना के सातवें दिन नवपद की आराधना के विषय में बताया कि नवपद में दो देव, तीन गुरु और चार धर्म इस प्रकार के क्रम में चार धर्म के अन्तर्गत आज सातवाँ धर्म सम्यक ज्ञान की आराधना के बारे में बताया। साध्वियों ने बताया कि सम्यक ज्ञान की आराधना से शुद्ध आचार की प्राप्ति होती है। आचार की पवित्रता से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। सम्यक ज्ञान की आराधना से हमें मालूम पड़ता है कि उत्तम आचरण क्या है यानि जीवन में उत्तम क्रिया का वर्तन उत्तम क्रिया से मोस - साधना में सफलता मिलती है। सर्वमान्य ग्रन्य तत्त्वार्थ सूत्र में उमा स्वातिजी ने स्पष्ट लिखा है - "ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्ष "अर्थात् सम्यक ज्ञान तथा क्रिया से ही मोक्ष मिलता है। आगे उन्होंने बताया कि सब दु:खों की जननी अज्ञान है। दु:ख की मूल जड़ अज्ञान है। इस अज्ञान रूपी अंधकार के द्वारा ही हमारा अनादि अनंत काल से इस संसार में परिभ्रमण चल रहा है। अज्ञान रूपी संसार से मुक्त होने वाली एक मात्र ज्ञान रूपी नौका है। ज्ञान का संबंध साक्षरता से नहीं है, ज्ञान का संबंध संस्कार से है। जैन शास्त्रों में ज्ञान पाँच प्रकार के बताये हैं। मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधिज्ञाना मन:पर्यवज्ञान. और केवल ज्ञान। पांच ज्ञान के द्वारा इकावन भेदों का ज्ञान प्राप्त होता है। यह ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान है, सम्यग्ज्ञान है। हमारा ज्ञान सम्चार ज्ञान होगा तो ही संस्कार की अति संपत्ति प्राप्त होगी। माँ के संस्कार के कारण ही आर्य रक्षित साधु बने और शास्त्र अभ्यास करते-करते जैन शासन के महान प्रभावक बन गये। ज्ञान की प्राप्ति के लिए पांच प्रकार का स्वाध्याय बताया गया है। स्वाध्याय के द्वारा ज्ञान का प्रमार्जन करना चाहिए। ज्ञान की आशालना नहीं करना चाहिए। ज्ञान की आराधना करके आत्म ज्ञान को प्रगर करना है। नवपद ओली के लाभार्थी मनोहलाल, कंचनदेवी, नरेन्द्र कुमार, स्नेहलता, गौरव, मीनल, क्यारा, महेन्द्र अमिता सिंघवी परिवार एवं निर्मला देवी, डॉ. हेमंत- दिव्या, डॉ. शरद-डॉ सीमा, राज, फ्रेया, हरित कोठारी परिवार थे।

चातुर्मास समिति के अशोक जैन व प्रकाश नागोरी ने बताया कि इस अवसर पर कार्याध्यक्ष भोपालसिंह परमार, कुलदीप नाहर, अशोक जैन, प्रकाश नागोरी, सतीस कच्छारा, राजेन्द्र जवेरिया, चतर सिंह पामेचा, चन्द्र सिंह बोल्या, हिम्मत मुर्डिया, कैलाश मुर्डिया, श्याम हरकावत, अंकुर मुर्डिया, बिट्टू खाब्या, भोपाल सिंह नाहर, अशोक धुपिया, गोवर्धन सिंह बोल्या सहित सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।

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