सार्थक और निर्दोष रुप से जीवन जीने की कला है धर्म-जिनेन्द्रमुनि मसा

By :  prem kumar
Update: 2024-11-03 11:36 GMT

 गोगुन्दा BHN

श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में उमरणा में आयोजित धर्म सभा में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि विश्व मे कतिपय शब्दो के विषय मे सर्वाधिक भ्रांतिया व्याप्त है।उनमें एक शब्द है धर्म।धर्म की व्याख्याएं आत्मा परमात्मा से शुरू होकर जड़ पदार्थो को स्पर्श करती हुई ठेठ नास्तिकता के स्तर को छू गई।जैसे प्याज के छिलके उतरते उतरते प्याज का सारा स्वरूप ही समाप्त हो जाता है ऐसे ही धर्म की व्याख्याएं बनाते बनाते हमारे धार्मिको ने इस मूल स्वरूप को ही समाप्त सा कर दिया है फलतः आज धर्म के सामने वैज्ञानिकों ने प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है।मुनि ने कहा कि धर्म की मूल व्याख्याओं में उनके प्रकार की पारस्परिक विसंगतिया पाई जाती है।अतः वे व्याख्याएं अनुपयोगियो तक ही रह सकती है किन्तु धर्म की उन सार्वभौमिक व्याख्याओं को आगे लाना चाहिए, जिसमे मत मतांतर के कोई भेद नही है।संत ने कहा सार्वभौमिक व्याख्याएं भी अनेक है किंतु उनमे प्रायः सभी संप्रदायों की सहमति है।ऐसी ही एक व्याख्या है। धर्म को चरित्र निर्माण की कला के रूप में स्थापित करना।धर्म को चरित्र निर्माण के लिए उपयोगी बना देना धर्म की सार्वभौम उपयोगिता को स्थापित करना है।यदि हमारे धर्म के व्याख्या कार इस दिशा में प्रयास स्फुरित कर दे तो धर्म की उपयोगिता के सामने लगा प्रश्नचिन्ह हट सकता है।वैसे प्रत्येक व्यक्ति जो एक समाज राष्ट्र और परिवार का अंग है उसे निर्दोष जीवन जीना ही पड़ेगा।यदि वह ऐसा नही करेगा तो असामाजिक तत्व मान लिया जाएगा।जैन संत ने कहा उसके लिए शांति और सुरक्षा के सभी द्वार बंद हो जाएगा।समाज मे जीना है तो निर्दोष और सार्थक बनकर ही जीना पड़ेगा।यदि इस निर्दोषता और सार्थकता का निर्माण धर्म की प्रेरणा से होगा तो ये विशिष्टताएं चिर स्थायी बन कर लोकोपकारक सिद्घ हो जाएगी।मुनि ने कहा धर्म के रचनात्मक स्वरूप को स्थापित करना धर्म की सच्ची सेवा है यही धार्मिकता भी है।प्रवीण मुनि ने कहा कि अहंकार का मार्ग अशांति और संक्लेशो का मार्ग है।सारे संघर्ष अहम से पैदा होते है।अहं केवल उलझने पैदा करता है ।रितेश मुनि ने कहा कि अधिकतर मानव अपने मे यह भ्रम पाल कर चलते है कि अनैतिक आचरण करके जीवन की सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध की जा सकती है।किंतु ऐसा सोचना सचमुच अपने आपको धोखा देने के समान है।प्रभातमुनि ने कहा कि जीवन मे आग्रहशील होना बुरा नही है बुरा है दुराग्रहपूर्ण होना। जो बात पकड़ ले वह गलत है और अपनी समझ मे भी वह गलती आ रही है।फिर भी उसे इसलिए पकड़ कर रहना है कि छोड़ देना अपमान जनक होगा।

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