भोजन और मन का घनिष्ट सम्बन्ध है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

Update: 2025-07-08 12:26 GMT

 उदयपुर BHN. मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में मंगलवार को विविध आयोजन हुए । श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि आराधना भवन में सुबह 7 बजे संतों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।

मालदास स्ट्रीट के नूतन आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा कि- भोजन और मन का घनिष्ट सम्बन्ध है। भोजन करने से मात्र शरीर नहीं बनता है, बल्कि मन पर भी उसकी तीव्र असर होती है। जिस भोजन में प्राणियों की हिंसा रही है, वह तामसी भोजन है। मांसाहार, शराब आदि उन्मादी भोजन करने से व्यक्ति के विवेक पर आवरण आ जाता है। तामसी भोजन करने वाले के जीवन में क्रोध की बहुलता होती है। छोटी-छोटी बातों में खून-खराबा करने में उसके जीवन में कोई संकोच नहीं रहता है। तामसी भोजन मानव को शैतान बनाता है। जिस भोजन में मेवे, मिठाई, मिर्च, मसाले का प्रमाण अधिक होता है वह राजसी भोजन है। राजसी भोजन से मन में विकार-वासना पैदा होती है। उसकी आँखे रूप पिपासु बनती है जिसके अधीन व्यक्ति परस्त्री गामी - वेश्यागामी बनता है। तामसी भोजन और राजसी भोजन हमारे मन को विकृत करके अविवेकी बनाता है। अत: इन दोनों का त्याग कर सत्त्व वर्धक सात्विक भोजन करना चाहिए। जिस भोजन में विशेष रूप से अनाज और दालों को उबालकर बनाया जाता है वह सात्विक आहार है। सात्विक आहार से मन पवित्र और स्थिर बनता है। भोजन के संयम से मन भी पवित्र बनता है और शारीरिक आरोग्य की भी प्राप्ति होती है। भूख की वेदना सभी के लिए असह्य है अत: जीवन में भोजन आवश्यक है परंतु भोजन पर संयम और नियंत्रण तो अवश्य होना चाहिए।

इस अवसर पर जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ मालदास स्ट्रीट उदयपुर के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, डॉक्टर शैलेंद्र हिरण, जसवंत सिंह सुराणा, गौतम मोर्डिया, हेमंत सिंघवी सहित कई श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।

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