रपट कहाँ लिखाऊँ मैं

Update: 2024-05-19 03:41 GMT


अपना दर्द किसे बताऊँ मैं

*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं।*

मुझसे झूठ ही बोला गया

खरोंट घाव का छोला गया।

मेरे दिल से खेला गया

दंड बेगुनाह पर पेला गया॥

दास्ताँ किसको सुनाऊँ मैं।

*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*

सदा ही मुझको छला गया

मैं हाथ हवन में जला गया।

वादों से मुझको ठगा गया

आग अरमानों को लगा गया॥

इस आग को कैसे बुझाऊँ मैं।

*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*

मिलता तनिक आराम नहीं

अपनी उपज के पूरे दाम नहीं।

महंगाई रुकने का नाम नहीं

मिलता हाथों को काम नहीं॥

अपना चूल्हा कैसे जलाऊँ मैं।

*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*

इश्तिहारों में विकास बहुत है

उन्हीं का जो ख़ास बहुत हैं।

किसान मज़दूर निराश बहुत है

सूखे कंठ में प्यास बहुत है॥

कैसे प्यास मिटाऊँ मैं।

*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*

जब घर हमारे कच्चे थे

वो दिन बहुत ही अच्छे थे।

लोग वचन के पक्के थे

अपने किरदार के सच्चे थे॥

वो दिन कहाँ से लाऊँ मैं।

*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*

परिवार को दवाई चाहिए

बच्चों को पढ़ाई चाहिए।

दो हाथों को काम चाहिए

मुफ़्त नहीं अनाज चाहिए।

क्योंकर मुफ़्त का खाऊँ मैं।

*रपट कहाँ लिखाऊँ मैं॥*

©️✍🏻...‘अनजाना’

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