खाने के लिए चावल-दाल और पीने के लिए पानी नहीं,: रक्षा बजट 18% बढ़ाएगा कंगाल पाकिस्तान

Update: 2025-05-06 13:09 GMT
रक्षा बजट 18% बढ़ाएगा कंगाल पाकिस्तान
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भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान की आर्थिक रूप से जूझ रही गठबंधन सरकार ने रक्षा बजट में भारी बढ़ोतरी की तैयारी कर रही है. वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जून में पेश होने वाले सालाना बजट में रक्षा खर्च में 18% बढ़ोतरी कर इसे 2,500 अरब रुपये से अधिक करने का प्रस्ताव है. इस कदम ने ऐसे समय में ध्यान खींचा है, जब पाकिस्तान की जनता महंगाई, बेरोजगारी और बुनियादी जरूरतों के लिए जूझ रही है, जहां के लोगों को खाने के लिए चावल-दाल और पीने के लिए पानी भी मयस्सर नहीं है.

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अगुवाई वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) सरकार जून के पहले सप्ताह में बजट पेश करने की तैयारी में है. यह बजट एक जुलाई से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए होगा. रिपोर्टों के मुताबिक, सरकार ने पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) को भी बजट के प्रारूप में शामिल कर लिया है और दोनों दलों के बीच रक्षा व्यय में बढ़ोतरी पर सहमति बन चुकी है.

आतंकवादी हमले के बाद बढ़ा तनाव

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और बढ़ गया है. इस हमले में 26 लोगों की जान गई थी, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में और खटास आ गई. इसी पृष्ठभूमि में पाकिस्तान ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए रक्षा बजट को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है.

पिछला और नया रक्षा बजट

चालू वित्त वर्ष 2024-25 में पाकिस्तान सरकार ने रक्षा के लिए 2,122 अरब रुपये आवंटित किए थे, जो 2023-24 की तुलना में करीब 15% अधिक था. अब इस बजट में और 18% वृद्धि करके यह आंकड़ा 2,500 अरब रुपये के पार पहुंचाया जाएगा.

कर्ज भुगतान और रक्षा बजट

गौर करने वाली बात यह है कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा वार्षिक खर्च कर्ज के भुगतान पर होता है, जिसके लिए चालू वित्त वर्ष में 9,700 अरब रुपये आवंटित किए गए हैं. रक्षा बजट इस कर्ज भुगतान के बाद दूसरा सबसे बड़ा व्यय घटक बन गया है.

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जनता की पीड़ा और सरकार की प्राथमिकता

पाकिस्तान की आम जनता को बुनियादी जरूरतें पूरी करने में संघर्ष करना पड़ रहा है. फिर भी सरकार की प्राथमिकता रक्षा खर्च को लगातार बढ़ाना है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या यह फैसला देश की जमीनी जरूरतों के अनुरूप है या सिर्फ राजनीतिक और सैन्य दबाव का परिणाम?

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