वाशिंगटन एक ओर जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और रूस के चीन के पक्ष में जाने को लेकर टिप्पणी की, वहीं उनके मंत्री ने अब बड़बोलेपन की सारी हदें पार कर दी हैं। ट्रंप प्रशासन में वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक ने ट्रंप के बयान के कुछ देर बाद ही कहा कि भारत अगले एक-दो महीनों में वार्ता की मेज पर होगा और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ समझौते की कोशिश करेगा। इस दौरान हेकड़ी दिखाते हुए ट्रंप के मंत्री ने भारत द्वारा माफी मांगने की बात भी कही। इस दौरान उन्होंने स्थिति को सामान्य करने के लिए भारत के सामने अपना बाजार खोलने, रूसी तेल की खरीद बंद करने और ब्रिक्स से नाता तोड़ने की शर्ते भी रखीं।
एक साक्षात्कार में लुटनिक ने कहा कि मुझे लगता है कि टैरिफ का परिणाम झेलने वाले और इसके कारण रोजगार गंवाने वाले लोग अपनी सरकार पर समझौता करने का दबाव बनाएंगे। ऐसे में यह अमेरिकी राष्ट्रपति के हाथ में होगा कि वह भारत के साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहते हैं।
ब्लूमबर्ग के साथ एक साक्षात्कार में रूसी तेल की खरीद के लिए भी लुटनिक ने भारत की आलोचना की। लुटनिक ने कहा कि रूस के यूक्रेन के साथ युद्ध से पहले भारत केवल दो प्रतिशत तेल रूस से लेता था, जबकि अब यह हिस्सा 40 प्रतिशत तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि भारत सस्ते तेल से मुनाफा कमा रहा है।
भारत को तय करना होगा कि उसे किस पक्ष में रहना है
लुटनिक ने कहा कि चूंकि रूस के तेल पर प्रतिबंध लगाया गया, इसके चलते रूस इसे खरीदने के लिए लोगों को खोजने की कोशिश कर रहा था। ऐसे में भारतीयों ने फैसला किया है कि चलो इसे सस्ते में खरीदते हैं और ढेर सारा पैसा कमाते हैं। उन्होंने इसे सरासर गलत और हास्यास्पद बताया तथा कहा कि भारत को यह तय करना होगा कि वह किस पक्ष में रहना चाहता है।
हम उपभोक्ता है, हमारे पास आना ही होगा
साक्षात्कार के दौरान यह पूछे जाने पर कि क्या अमेरिका भारत के साथ बातचीत करने को तैयार है तो उन्होंने कहा कि हम हमेशा बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि चीन और भारत दोनों अपना माल हमें बेचते हैं। इसलिए वे एक-दूसरे को नहीं बेच पाएंगे। हम दुनिया के उपभोक्ता हैं। लोगों को याद रखना होगा कि यह हमारी 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है जो विश्व का उपभोक्ता है। इसलिए उन्हें ग्राहक के पास वापस आना ही होगा, क्योंकि हम सभी जानते हैं कि ग्राहक हमेशा सही होता है।
भारत रूस और चीन के बीच की कड़ी
उन्होंने कहा कि भारत अभी अपना बाजार नहीं खोलना चाहता, रूसी तेल खरीदना बंद नहीं करना चाहता और ब्रिक्स का हिस्सा बनना बंद नहीं करना चाहता। उन्होंने कहा कि वे (भारत) रूस और चीन (ब्रिक्स में) के बीच की कड़ी हैं। अगर आप यही बनना चाहते हैं तो बन जाइए। लेकिन या तो डॉलर का समर्थन कीजिए, संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन कीजिए, अपने सबसे बड़े ग्राहक यानी अमेरिकी उपभोक्ता का समर्थन कीजिए या फिर मुझे लगता है कि आपको 50% टैरिफ देना होगा। और देखते हैं कि यह कब तक चलता है।
टैरिफ वॉर के बीच SCO समिट के बाद नरम पड़े ट्रंप
लुटनिक का यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के आज के बयान से ठीक उलट है। ट्रंप ने भारत चीन और रूस के एक साथ आने पर निराशा जताते हुए कहा था कि भारत और रूस चीन के पाले में चले गए हैं। ट्रंप ने सोशल मीडिया ट्रुथ सोशल पर लिखा कि, लगता है हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को सोशल मीडिया ट्रुथ पर पोस्ट में एक तस्वीर भी शेयर की है। इस तस्वीर में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नजर आ रहे हैं। इस पोस्ट में डोनाल्ड ट्रंप ने लिखा कि, लगता है कि हमने भारत और रूस को गहरे, अंधकारमय चीन के हाथों खो दिया है। ईश्वर करे कि उनका भविष्य लंबा और समृद्ध हो।
एससीओ समिट ने खींचा विश्व का ध्यान
ट्रंप की यह टिप्पणी पर उस समय आई जब पिछले दिनों चीन के तिआनजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नजदीकियों ने विश्व का ध्यान खींचा था। भारत-अमेरिका संबंधों में खटास तब और गहरी हो गई जब ट्रंप प्रशासन ने भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ दोगुना कर 50 प्रतिशत कर दिया और साथ ही रूस से कच्चा तेल खरीदने पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत शुल्क भी लगा दिया।
US-India Trade: Trump minister Howard Lutnick's harsh words says Soon India will be on the negotiating table
ट्रंप के टैरिफ की अमेरिका में ही आलोचना - फोटो : Amar Ujala
पूर्व अधिकारियों ने ट्रंप को दी भारत से संबंध सुधारने की नसीहत
वहीं इससे पहले तमाम पूर्व अमेरिकी अधिकारियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भारत के साथ संबंध सुधारने की नसीहत दी थी। इस कड़ी में पूर्व अमेरिकी एनएसए जॉन बोल्टन ने कहा कि 'ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका-भारत संबंधों को दशकों पीछे धकेल दिया है, जिससे पीएम मोदी रूस और चीन के करीब चले गए हैं। बीजिंग ने खुद को अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप के विकल्प के रूप में पेश किया है।' पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन और पूर्व उप विदेश मंत्री कर्ट एम. कैंपबेल ने एक लेख में लिखा कि अमेरिका और भारत के संबंध को दोनों ही दलों (डेमोक्रेट और रिपब्लिकन) का समर्थन मिला है। इन संबंधों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की मनमानी को भी रोका है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका के साझेदारों को भारत को यह समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि ट्रंप का व्यवहार अक्सर किसी समझौते की शुरुआत का संकेत होता है।
भारत का रुख शुरू से ही स्पष्ट
वहीं, भारत ने शुरुआत से ही स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा और विदेश नीति राष्ट्रीय हित और बाजार की स्थितियों पर आधारित है। भारत ने कहा है कि रूस से कच्चा तेल खरीदना उसकी ऊर्जा सुरक्षा और नागरिकों की आवश्यकताओं से जुड़ा है और इस पर बाहरी दबाव का असर नहीं पड़ेगा। वहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी आज ही कहा है कि भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा।
